अब मैं ही मेरी शान हूँ! /कविता

बेटी घर छोड़ बनी धारा   किसी विचलित उर से यह, नव जलधारा आ जगी है। नदियाँ सागर पार कर, उद्भवित होने लगी हैं।   इस करूणामयी धारा से, परिपूर्ण हुआ सागर। विशाल पर्वत बहे आ रहे , चली आ रही खादर।