साहित्य अब मैं ही मेरी शान हूँ! /कविता बेटी घर छोड़ बनी धारा किसी विचलित उर से यह, नव जलधारा आ जगी है। नदियाँ सागर पार कर, उद्भवित होने लगी हैं। इस करूणामयी धारा से, परिपूर्ण हुआ सागर। विशाल पर्वत बहे आ रहे , चली आ रही खादर। July 4, 2022