‘हमें पंडितों और मुल्लाओं की जरूरत नहीं’

गदर आंदोलन(1913) के ज्यादातर नेता व कार्यकर्ता सिख थे, लेकिन अखबार व ‘गदर की गूंज’ कविता संग्रह ने जिस विचारधारा का प्रचार किया, उसका चरित्र मूलतः धर्मनिरपेक्ष था।

गदर आंदोलन के दौरान गदर पत्र का सम्पादन शुरू किया गया। इसमें छपी कविताओं ने आम जनमानस को बहुत प्रभावित किया। बाद के दिनों में इसमें छपी कविताओं का संकलन ‘गदर की गूंज’ नाम से छापा गया। इस संकलन को जनता के बीच मुफ़्त में बांटा गया। इन कविताओं की विशेष बात थी उनका धर्मनिरपेक्ष चरित्र। इसमें छपी एक कविता का भावार्थ था-

“हमें पंडितों और मुल्लाओं की जरूरत नहीं, भजन और प्रार्थनाओं की जरूरत नहीं, इससे हम भटक जाएंगे, यह लड़ने का वक्त है, अपनी तलवारें खींच लो।”