G20, सनातन धर्म और दुनिया के सामने भारत की तस्वीर

वर्ष 2023 के लिए भारत G20 की अध्यक्षता कर रहा है। G20 एक अन्तरसरकारी मंच है जिसमें 19 देशों के अतिरिक्त यूरोपीय संघ (EU) और अफ्रीकी संघ (AU) भी शामिल हैं, इसलिए इसे G21 के रूप में भी संबोधित किया जाता है।

क्या बहुसंख्यवाद की वजह से जल रहा है मणिपुर?

“बहरों को सुनाने के लिए धमाके की जरूरत होती है” फ्रेंच क्रांति के ऑगस्ट वेलिएंट द्वारा कहे इस वाक्य से प्रेरित होकर भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने 8 अप्रैल 1929 को असेंबली में बम फेंककर इसी वाक्य को दोहराया जिसका शोर

क्या भारत में धर्मनिरपेक्षता की अवधारणा विलुप्त होने की कगार पर आ गई है?

शब्दों में अर्थ छुपे होते हैं, इतिहास भी, और इरादे भी। “धर्मनिरपेक्ष” के शाब्दिक अर्थ को समझें तो इस में 2 शब्द छुपे हैं – धर्म और पक्ष – और इन दोनों शब्दों को जोड़ता है निः – जिस से पूरा अर्थ

विशालकाय प्रतिमा के बहाने बौने विचारों का प्रसार

पिछले दिनों भारतीय राजनीतिक परिदृश्य में देश की विपक्षी दल कांग्रेस के नेता राहुल गांधी ने चुनावी राजनीति के इतर वैचारिक द्वंद का जिक्र किया, उसी वक्त कर्तव्य पथ पर नेताजी सुभाष चंद्र बोस की विशालकाय प्रतिमा का अनावरण किया गया। और

भारत जोड़ो यात्रा: एक ‘आधुनिक आशा’

भारत जोड़ो यात्रा के माध्यम से, उस नफरत को लोगों के दिल से हटाना फिर सद्भाव की नई सीख देना यह जरूरी प्रयास होगा। इसके परिणाम क्या होंगे, क्या इस यात्रा के पूर्व से पश्चिम जाने का आधार, आने वाले चुनावों में

क्या ‘निर्भया’ के समय का समाज निर्भीक था और आज के समय का निर्लज्ज?

जो दिल्ली को जानते है वो वहाँ की गर्मी और सर्दी से भली भाँति परिचित होंगे। 17 दिसंबर 2012 की कंपकंपाती ठंड में दिल्ली उबल रही थी क्योंकि समाज बिना किसी चेहरे या संगठन के सहयोग के संगठित हो क्रोध से उबल

शायद अटल, नेहरू के समर्पण को नजरंदाज ना करना चाहते हों

अंबेडकर के पास पूरा मौका था कि वो सरकार के मुखिया नेहरू की कटु आलोचना संसद पटल पर कर सकें  लेकिन शायद संसदीय गरिमा या नेहरू का योगदान संविधान सभा में अंबेडकर के जेहन में रहा होगा जहां वह शालीनता से नेहरू

‘धर्म’ की सही समझ रखना भी धर्म ही है

जब भी किसी धर्म संसद का उल्लेख होगा तो सहसा स्वामी विवेकानंद का 11 सितंबर 1893 का “विश्व धर्म संसद ” में हिंदू धर्म पर दिया हुआ भाषण जेहन में आएगा और आज लगभग 129 सालों बाद भी वह क्षण हर भारतीय

भारत विभाजन: अंग्रेज़ी कुटिलता या हिंदू-मुस्लिम धर्मांधता?

मुस्लिम लीग के नेताओं की परिकल्पना यह थी कि पाकिस्तान मुख्यतः एक मुस्लिम बाहुल्य देश होगा जिसे हिन्दुस्तान का हर मुस्लिम अपना समर्थन देगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ क्योंकि भारत के समस्त मुसलमानों ने इसके गठन का समर्थन नहीं किया। बंटवारा चाहे

‘प्यासा’ और ‘रॉकस्टार’: सामाजिक वास्तविकताओं को उकेरती कहानियाँ

हम प्रशासनिक ग़ुलामी से तो आज़ाद हो गए थे लेकिन सामाजिक और व्यक्तिगत बेड़ियों से नहीं। सामंती मानसिकता, जातिवाद, अमीर-ग़रीब का फ़र्क़, धार्मिक उन्माद, जो सदियों से मज़बूती से टिके हुए थे, वह एक दशक में कैसे जा सकते थे? और साथ

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