बांके बिहारी मंदिर विवाद: सुप्रीम कोर्ट की यूपी सरकार को फटकार, मुकदमे को “हाईजैक” करने का आरोप

कोर्ट ने सरकार पर मुकदमे को "हाईजैक" करने का आरोप लगाया और पूछा, "राज्य किस क्षमता में इस विवाद में शामिल हुआ?"

बांके बिहारी मंदिर सुप्रीम कोर्ट विवाद

सुप्रीम कोर्ट ने वृंदावन के श्री बांके बिहारी मंदिर विवाद में उत्तर प्रदेश सरकार को कड़ी फटकार लगाई है। न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना और सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने कहा कि निजी पक्षों के बीच चल रहे मुकदमे में राज्य सरकार का हस्तक्षेप “कानून के शासन को खत्म कर देगा”

कोर्ट ने सरकार पर मुकदमे को “हाईजैक” करने का आरोप लगाया और पूछा,

“राज्य किस क्षमता में इस विवाद में शामिल हुआ?”

याचिकाकर्ता देवेंद्र नाथ गोस्वामी ने मंदिर की ₹300 करोड़ की निधि के दुरुपयोग का आरोप लगाया। उन्होंने दावा किया कि यह राशि उत्तर प्रदेश सरकार को बिना उनकी सहमति के दी गई। वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कोर्ट में कहा, “एक निजी मंदिर की आय को राज्य को कैसे सौंपा जा सकता है?” 

ट्रस्ट का गठन और पुनर्विकास योजना

राज्य सरकार ने जवाब में कहा कि मंदिर के प्रशासन और प्रस्तावित कॉरिडोर परियोजना की देखरेख के लिए एक ट्रस्ट का गठन किया गया है, और सभी धनराशि इस ट्रस्ट के पास होगी, न कि सरकार के पास। कोर्ट ने सरकार को 29 जुलाई तक हलफनामा दाखिल करने और अध्यादेश की प्रति याचिकाकर्ता को सौंपने का निर्देश दिया।

उत्तर प्रदेश सरकार ने श्री बांके बिहारी जी मंदिर न्यास ट्रस्ट का गठन किया है, जो मंदिर के प्रशासन, अनुष्ठानों, त्योहारों और सुरक्षा की देखरेख करेगा।यह ट्रस्ट 18 सदस्यों का होगा, जिसमें सात पदेन अधिकारी और 11 नामित वरिष्ठ सदस्य शामिल होंगे, जिनमें से दो मंदिर के गोस्वामी समुदाय से होंगे।

सरकार ने ₹500 करोड़ की लागत से एक कॉरिडोर परियोजना की योजना बनाई है, जिसका उद्देश्य मंदिर के आसपास की भीड़ को कम करना और सुविधाओं में सुधार करना है। हालांकि, मंदिर के पुजारियों और स्थानीय समुदाय ने इस परियोजना पर आपत्ति जताई है, यह कहते हुए कि इससे मंदिर की पारंपरिक धार्मिक प्रथाओं पर असर पड़ सकता है।