नफ़रत का नया जूस : लव जिहाद

‘नफरत का तंत्र’ एक सोची समझी रणनीति का हिस्सा होता है यह कोई एक दिन या एक कानून से पैदा होने वाली चीज नहीं है। ‘नफरत के जूस’ से इसे धीरे धीरे पोषण मिलता है और एक बुद्धिमान और दूरदर्शी नेतृत्व इसे ‘लंगोटी’ में ही पहचान लेता है

love jehad

love jehad भाजपा के सांसद साक्षी महाराज ने सितंबर 2014 में कहा कि मदरसों में मुस्लिम युवाओं को लव जिहाद के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। उन्हे “सिख लड़की के साथ अफेयर करने के लिए 11 लाख, हिन्दू लड़की के साथ अफेयर करने के लिए 10 लाख और जैन लड़की के साथ अफेयर करने के लिए 7 लाख रुपए दिए जाते हैं।” साक्षी महाराज ने जब यह बयान दिया था, न तब उनके पास कोई प्रमाण थे और न ही आज; जब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री अजय कुमार बिष्ट की पहल पर लव जिहाद पर अध्यादेश लाया गया है, आज जब एक झूठ राष्ट्रीय मुद्दा बन कर लोगों की शांति में और जीवन जीने के अधिकार में ख़लल बन कर उभरा है तब भी कोई प्रमाण नहीं है कि लव जिहाद जैसा कुछ है भी। हाँ ये जरूर है कि उत्तर प्रदेश के वर्तमान मुख्यमंत्री 2014 में चुनावी रैलियों में जो बोलते रहे (“मुस्लिम जो काम भारत में ताकत के बाल पर नहीं कर पाए उसे लव जिहाद के माध्यम से कर रहे हैं”), अब वो कानून बन गया है और इस कानून से बरेली के ओवैस अहमद इसके पहले शिकार भी बन चुके हैं।

यह कानून यद्यपि अभी ‘अध्यादेश अवतार’ में है और इलाहाबाद उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय में अपनी वैधता के लिए चैलेंज भी हो चुका है परंतु फिर भी यह अध्यादेश जिस दरार को बनाने के उद्देश्य से आया हुआ जान पड़ता है उसकी नींव तैयार हो चुकी है।


जो कानून किसी संप्रदाय (हिन्दुओं) में चेतना की बजाय गुदगुदी उत्पन्न करता है, समाधान की बजाय व्यवधान उत्पन्न करता है, सद्भावना की बजाय संशय उत्पन्न करता है, संगठन की बजाय विचलन उत्पन्न करता है, न्याय की बजाय उत्पीड़न उत्पन्न करता है वो कानून नहीं बल्कि एक कपड़ा है जो उस सम्प्रदाय की आँखों पर बांधा गया है जिससे वो अपनी दुर्दशा देख न सकें सिर्फ उस शांति को महसूस कर सकें जिसे मुंह में कपड़ा ठूंस के उत्पन्न किया गया है।

भारत स्वतंत्रता के पहले से 1920 के दशक में ही इस लव जिहाद थ्योरी को सुन चुका है। तब इसे ‘अब्डक्शन’(अपहरण) के नाम से आर्य समाज और अन्य संगठनों द्वारा प्रचारित किया जाता था। प्रमाण तो तब भी कुछ नहीं मिले परंतु नफरत के जो बीज डाले गए थे उसके फलों का जूस अब बाजार में गली गली लगे ठेलों पर बिकने लगा है। नफरत के जूस की दुकाने इतनी फैन्सी और आधुनिक बनाई गई हैं कि आम आदमी बिना परिणाम प्रभाव जाने गिलास पर गिलास गटकता जा रहा है। नफ़रत के जूस की नई खेप उत्तर प्रदेश के लव जिहाद कानून के साथ आई है। कहने को तो यह कानून अवैध और जबरन कन्वर्ज़न के खिलाफ है, परंतु इस जबरदस्ती में उस अंतर्धार्मिक विवाह को भी सम्मिलित कर लिया गया है जिसके लिए संबंधित जिलाधिकारी से पूर्वानुमति न ली गई हो। विवाह करने वाले पक्ष द्वारा जिलाधिकारी को 2 महीने पहले नोटिस देना होगा। पक्ष को यह साबित भी करना होगा कि धर्म परिवर्तन का उद्देश्य मात्र शादी करना नहीं है। यदि यह साबित हो जाता है कि किसी महिला का धर्म परिवर्तन सिर्फ शादी करने के लिए हो रहा है तो ऐसी शादी को अमान्य (‘शून्य) घोषित कर दिया जायेगा । ऐसे मामलों में लड़के को 10 वर्ष तक की सजा का प्रावधान है। उत्तर प्रदेश में दो मामले आ भी चुके हैं पहला मामला बरेली के ओवैस अहमद का है जिसमें लड़के के पिता का कहना है कि लड़की पक्ष के लोगों पर दबाव डालकर जबरदस्ती एफआईआर दर्ज कारवाई गई है जबकि लड़की और उसके घरवाले पहले से शादी के लिए सहमत थे और वो हमारे साथ हैं। दूसरा मामला राजधानी लखनऊ का है, जिसमें हिन्दू युवा वाहिनी और पुलिस ने मिलकर फ़िल्मी अंदाज में शादी को रोक दिया और कहा कि जिलाधिकारी की अनुमति लेकर दो महीने बाद शादी करें, यह शादी (एम्एससी केमिस्ट्री रैना गुप्ता और फार्मासिस्ट मोहम्मद आसिफ की थी),लड़की के पिता ने कहा कि हम सहमत थे,यहाँ कोई धर्म परिवर्तन जैसी बात नहीं थी। पुलिस जबरन लड़के और उसके परिवार को थाने ले जाती है और उन पर लव जिहाद कानून के तहत मामला दर्ज कर लेती है।


“NIA के वर्तमान अध्यक्ष योगेश चंदर (YC) मोदी हैं, जो 1984 बैच के अधिकारी हैं। ये वही मोदी साहब हैं जिन्होंने गुजरात दंगों में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री “नरेंद्र मोदी की भूमिका”, नरोदा पटिया केस, गुलबर्ग सोसाइटी केस और हरेन पंड्या हत्या मामले की भी जांच की थी, जिसकी रिपोर्ट पर गुजरात उच्च न्यायालय ने इन्हे जबरदस्त फटकार भी लगाई थी। अब श्री योगेश चंदर मोदी साहब NIA के चीफ हैं और NIA गृहमंत्रालय के अंतर्गत कार्य करने वाली एक एजेंसी है, जिसके मुखिया भारत के गृहमंत्री श्री अमित शाह जी हैं। ऐसे में अगर एनआईए हादिया मामले में लव जिहाद को साबित करना चाहे तो बात सिर्फ संयोग की नहीं है बल्कि उस नफ़रत के जूस की है जिसकी सप्लाई चेन को खोज निकालना इतना कठिन काम नहीं”

भारत के संविधान का अनुच्छेद 21 ‘जीवन जीने की स्वतंत्रता’ देता है जिसमे विवाह करने की स्वतंत्रता भी शामिल है। अनुच्छेद 25 “विवेक और अंतःकरण की स्वतंत्रता” प्रदान करता है जिसका मतलब है कि हम जो धर्म चाहे अपनाएं और न चाहें तो नास्तिक बन जाएँ। अर्थात राज्य हमें किसी धर्म को मानने या न मानने के लिए बाध्य नहीं कर सकता। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 20 नवंबर अर्थात अध्यादेश के 6 दिन पहले ही ‘सलामत अंसारी- प्रियंका खरवार’ मामले में निर्णय सुनाते हुए कहा था कि ‘अपने पार्टनर को चुनने का अधिकार और अपने पसंदीदा व्यक्ति के साथ रहने का अधिकार जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार के तहत एक मूल अधिकार है.’
हादिया (अखिला अशोकन) मामले में केरल उच्च न्यायालय ने नैशनल इंवेस्टिगेटिव एजेंसी (एनआईए) के इनपुट के आधार पर शफीन जहान और हादिया की शादी को अवैध करार दिया था। जब मामला सर्वोच्च न्यायालय पहुँचा तो न्यायालय ने NIA से टेरर ऐंगल पर जांच करने के लिए कहा और सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व जज की अध्यक्षता में एक कमेटी बना दी गई। कमेटी ने NIA की अनुसंशाओं के आधार पर एक रिपोर्ट तैयार की और रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट में पेश कर दी गई। NIA यद्यपि तथ्य विहीन थी फिर भी न जाने क्यों उसने न्यायालय में कहा कि हादिया शादी मामले में कुछ अनवांटेड है,ये भी कहा कि हादिया का पति कुछ टेरर ग्रुप्स के संपर्क में था। पर एक बार फिर से प्रमाण के नाम पर कुछ नहीं था। न्यायालय ने NIA से कहा आप जांच करते रहिए पर हमें नहीं लगता कि इस शादी में कुछ संदेहास्पद है इसलिए हम इस शादी को वैधता प्रदान करते हैं। वैसे तो NIA एक राष्ट्रीय एजेंसी है जो टेरर मामलों की जांच करती है और इसकी शुरुआत बंबई 26/11 के बाद 2008 में हुई।
ये एजेंसी हमारे अपने देश की है, हमें इस पर विश्वास है और होना भी चाहिए पर कुछ ऐसे तथ्य हैं जो मात्र संयोग नहीं लगते, जैसे- भाजपा के सांस्कृतिक संगठन RSS और उसके अनुषंगी संगठन जैसे विहिप, बजरंग दल, दुर्गा वाहिनी और स्वयं उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री अजय कुमार बिष्ट जी हमेशा ‘लव जिहाद’ को एक मुख्य मुद्दा समझते रहे हैं ऐसे में इस संयोग की जानकारी जरूरी है- NIA के वर्तमान अध्यक्ष योगेश चंदर (YC) मोदी हैं, जो 1984 बैच के अधिकारी हैं। ये वही मोदी साहब हैं जिन्होंने गुजरात दंगों में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री “नरेंद्र मोदी की भूमिका”, नरोदा पटिया केस, गुलबर्ग सोसाइटी केस और हरेन पंड्या हत्या मामले की भी जांच की थी, जिसकी रिपोर्ट पर गुजरात उच्च न्यायालय ने इन्हे जबरदस्त फटकार भी लगाई थी। अब श्री योगेश चंदर मोदी साहब NIA के चीफ हैं और NIA गृहमंत्रालय के अंतर्गत कार्य करने वाली एक एजेंसी है, जिसके मुखिया भारत के गृहमंत्री श्री अमित शाह जी हैं। ऐसे में अगर एनआईए हादिया मामले में लव जिहाद को साबित करना चाहे तो बात सिर्फ संयोग की नहीं है बल्कि उस नफ़रत के जूस की है जिसकी सप्लाई चेन को खोज निकालना इतना कठिन काम नहीं।
हमें यह बात याद रखनी चाहिए कि ‘नफरत का तंत्र’ एक सोची समझी रणनीति का हिस्सा होता है यह कोई एक दिन या एक कानून से पैदा होने वाली चीज नहीं है। ‘नफरत के जूस’ से इसे धीरे धीरे पोषण मिलता है और एक बुद्धिमान और दूरदर्शी नेतृत्व इसे ‘लंगोटी’ में ही पहचान लेता है। क्योंकि अगर इसे ‘हाफ पैन्ट’ या बाद में ‘फुल पैंट’ पहनने का मौका दे दिया गया तो हमें एक देश के रूप में एक ‘साम्प्रदायिक ढेर’ ही मिलेगा, हम कभी एक सशक्त और संगठित देश नहीं खोज पाएंगे।
जो कानून किसी संप्रदाय (हिन्दुओं) में चेतना की बजाय गुदगुदी उत्पन्न करता है, समाधान की बजाय व्यवधान उत्पन्न करता है, सद्भावना की बजाय संशय उत्पन्न करता है, संगठन की बजाय विचलन उत्पन्न करता है, न्याय की बजाय उत्पीड़न उत्पन्न करता है वो कानून नहीं बल्कि एक कपड़ा है जो उस सम्प्रदाय की आँखों पर बांधा गया है जिससे वो अपनी दुर्दशा देख न सकें सिर्फ उस शांति को महसूस कर सकें जिसे मुंह में कपड़ा ठूंस के उत्पन्न किया गया है।