सारांश: क्या है 30 साल पुराना भँवरी देवी का मामला?

भँवरी देवी की कहानी शोषण की जीती जागती कहानी है। जिसमें शोषण करने वाले किरदार गाँव, समाज, परिवार, पुलिस, डॉक्टर, नेता, फिल्म मेकर और फिल्म अभिनेता तक के रूप में सामने आते रहे। भँवरी उसी गाँव में अपने उसी घर से अपने सम्मान की लड़ाई लड़ती रही जोकि आज भी जारी है।

Bhanwari devi 1992 vishakha guidelines

जब से बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और कॉंग्रेस नेता राहुल गाँधी ने ‘जातिगत जनगणना’ की चर्चा शुरू की है तब से लगातार पिछड़ा वर्ग(OBC) को लेकर राजनीतिक चर्चा गरम बनी हुई है। अब तमाम नेता खोज-खोजकर ऐसे लोगों से मिल रहे हैं और उन्हे सामने ला रहे हैं जिनका संबंध OBC वर्ग से है। नेताओं द्वारा लगातार दावे किए जा रहे हैं कि वो OBC वर्ग को न्याय दिलाने वाले मसीहा हैं। यहाँ तक कि भारत जैसे शक्तिशाली देश का प्रधानमंत्री भी स्वयं की OBC पहचान को सामने लाने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ रहा है।

राजस्थान में चुनाव होने वाले हैं। वोटिंग के लिए बस कुछ दिन ही बाकी हैं। इसलिए OBC न्याय के मसीहा भँवरी देवी के घर भी पहुँच चुके हैं। 30 साल पुरानी एक बेहद शर्मनाक घटना के लिए अब आज भँवरी देवी को न्याय दिलाने की याद आ रही है।

क्या है 1992 का ‘भँवरी देवी मामला’?

  • कुम्हार जाति से संबंध रखने वाली भँवरी देवी राजस्थान के भटेरी गाँव की रहने वाली हैं। जयपुर से लगभग 50 किमी दूर इस गाँव में गुर्जर जाति का वर्चस्व है। जाति क्रम में गुर्जर जाति भँवरी देवी की जाति, कुम्हार से ऊंची मानी जाती है।
  • 1985 की बात है जब भँवरी देवी राजस्थान सरकार द्वारा संचालित ‘महिला विकास प्रोजेक्ट’ में ‘साथिन’ के रूप में कार्य करने लगीं और एक जमीनी कार्यकर्ता बन गईं। साथिन के रूप में भँवरी भूमि, जल, शिक्षा व राशन के वितरण से संबंधित क्षेत्रों में आम जनता के हित के लिए कार्य करती रहीं।
  • 1987 में भँवरी ने अपने पड़ोस के एक गाँव में एक महिला के साथ हुई बलात्कार की कोशिश का मामला जोर-शोर से उठाया।
  • भँवरी देवी का विवाह लगभग 5 वर्ष की उम्र में ही हो गया था। राजस्थान में उन दिनों बाल-विवाह खूब प्रचलन में था और इस कुप्रथा को समाज के एक बड़े वर्ग का समर्थन प्राप्त था। अपने जीवन की कठिनाइयों और सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में भँवरी ने समझा था कि बाल-विवाह एक ऐसी कुप्रथा है जिससे मानव विकास को क्षति पहुँचती है।
  • 1992 में भँवरी देवी ने अपने गाँव में हुए एक बाल-विवाह को रोकने की कोशिश की। गाँव में अक्षय तृतीया को विवाह के लिए शुभ माना जाता था इसलिए  इस दिन गाँव के एक गुर्जर परिवार ने अपनी नवजात बच्ची का विवाह करने का प्रण लिया। भँवरी देवी को काम दिया गया कि वो राम करण गुर्जर के परिवार को समझायें कि वो ऐसा न करें। भँवरी ने खूब कोशिश की लेकिन गुर्जर परिवार नहीं माना।
  • बाल-विवाह को रोकने के लिए प्रतिबद्ध भँवरी ने अब प्रशासन की मदद लेने की ठानी। पुलिस की गश्त की वजह से गुर्जर परिवार अक्षय तृतीया को अपनी नवजात का विवाह नहीं कर पाया। लेकिन जिद्दी राम करण गुर्जर ने अगले दिन रात 2 बजे अपनी बच्ची का विवाह करवा दिया।
  • इस घटना से पूरे गाँव के गुर्जर भँवरी से नाराज हो गए। भँवरी देवी के परिवार का सामाजिक और आर्थिक बहिष्कार करना शुरू कर दिया गया। पारंपरिक रूप से मिट्टी के बर्तन बनाकर अपनी जीविका चलाने वाले भँवरी के परिवार से मिट्टी के बर्तन खरीदने बंद कर दिए गए। भँवरी के नियोक्ता(Employer) को डराया और  भँवरी के पति की बुरी तरह पिटाई की गई, उसे मार-मारकर अधमरा कर दिया गया और इस तरह भँवरी को नौकरी छोड़ने पर बाध्य कर दिया गया।
  • एक कुप्रथा के खिलाफ लड़ने वाली महिला, एक बच्ची की जिंदगी बचाने वाली महिला से गाँव के गुर्जरों की नाराजगी ने वहशीपन धारण कर लिया। 22 सितंबर 1992 की शाम जब भँवरी और उनका पति दोनो खेत में काम कर रहे थे तब गुर्जर समुदाय के 5 लोग वहाँ पहुँच गए और पति को इतना मारा कि वो लगभग मर चुका था और भँवरी के साथ पांचों लोगों ने बारी-बारी से बलात्कार किया।
  • सामूहिक बलात्कार की पीड़ा झेलने के बाद भँवरी अपने एक साथी की मदद से पास के बस्सी पुलिस स्टेशन गई ताकि FIR दर्ज हो सके। लेकिन पुलिस सिस्टम ने भी उसके साथ अच्छा बर्ताव नहीं किया।
  • तमाम संदेहों और पूर्वग्रहों के बाद पुलिस ने FIR दर्ज कर ली लेकिन थाने में भँवरी देवी से उसका लहंगा सबूत के रूप में तत्काल उसी समय जमा करने को कहा गया।
  • भँवरी को पुलिस स्टेशन में ही लहंगा उतारकर जमा करवाना पड़ा। इस दौरान भँवरी अपने अधमरी हालत वाले पति का खून से सना साफा लपेटकर ही रात में 1 बजे थाने से पैदल चलकर 3 किमी दूर रहने वाली अपने साथिन के घर पहुंची।
  • भँवरी को पुलिस FIR के साथ-साथ अपना मेडिकल भी कराना था ताकि उसके साथ हुआ अपराध साबित हो सके। भँवरी इसके लिए बस्सी के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र(PHC) पहुंची। अस्पताल में बैठे पुरुष डॉक्टर ने भँवरी का मेडिकल करने से मना कर दिया। उसने कहा चूंकि अस्पताल में कोई महिला डॉक्टर नहीं है इसलिए वह उसका मेडिकल नहीं कर सकता है।
  • प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र उस डॉक्टर ने भँवरी को सवाई मान सिंह अस्पताल, जयपुर ‘रेफर’ कर दिया। लेकिन परेशान भँवरी को परेशान करने में डॉक्टर ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी। जबकि डॉक्टर जानता था कि मामला बलात्कार का है और इससे संबंधित ही मेडिकल टेस्ट होना चाहिए, इसके बावजूद उसने ‘रेफर लेटर’ में यह लिखा कि वह इसलिए रेफर कर रहा है ताकि भँवरी की उम्र की जांच हो सके।
  • ताज्जुब नहीं होना चाहिए कि जब भँवरी को मेडिकल सहायता की जरूरत थी तब सवाई मान सिंह अस्पताल प्रशासन ने मजिस्ट्रेट के आदेश के बिना मेडिकल टेस्ट करने से मना कर दिया।
  • तनिशा अब्राहम ने अपनी किताब ‘द पॉलिटिक्स ऑफ पैट्रीआर्की एण्ड साथिन भँवरीज रेप’ में लिखा कि मजिस्ट्रेट, जिसे जनता की सेवा करनी थी उसने उस दिन कोई आदेश सिर्फ इसलिए पारित नहीं किया क्योंकि उसका ऑफिस का टाइम समाप्त हो चुका था। मजिस्ट्रेट साहब का आदेश अगले दिन ‘ऑफिस टाइम’ पर आया तब जाकर भँवरी का मेडिकल टेस्ट हुआ। लेकिन भँवरी के साथ बलात्कार की घटना घटे अब तक 48 घंटे बीत चुके थे। जबकि भारतीय कानून के तहत यह अवधि 24 घंटे से अधिक नहीं होनी चाहिए थी।
  • डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में ट्रायल शुरू हुआ, 1993 में चार्जशीट दाखिल हुई, 1994 में आरोपियों की गिरफ़्तारी हुई और 15 नवंबर 1995 आते-आते फैसला आरोपियों के पक्ष में आ गया। पांचों आरोपियों को अदालत ने बेकसूर मानकर छोड़ दिया।
  • 1995 में जब बलात्कारियों को छोड़ दिया गया तब बस्सी विधानसभा से भारतीय जनता पार्टी के विधायक कन्हैया लाल मीणा ने बलात्कारियों के समर्थन में, जीत की खुशी मनाने के लिए जयपुर में रैली का आयोजन किया। भाजपा विधायक ने यह सुनिश्चित किया कि भाजपा की महिला इकाई इस रैली में शामिल हो। इस महिला इकाई ने भँवरी देवी को भरी रैली में झूठा कहकर संबोधित किया।
  • आश्चर्य की बात तो यह है कि इस कन्हैया लाल मीणा को 2003 में फिर से बस्सी विधान सभा से भाजपा ने टिकट दे दिया। या यह कहा जाए कि भाजपा ने कन्हैया लाल मीणा के उस घोर महिला विरोधी कृत्य को समर्थन प्रदान कर दिया जिसमें बलात्कारियों का समर्थन किया गया था।
  • यह बात भी कहनी जरूरी है कि जब भँवरी देवी का बलात्कार हुआ तब भी प्रदेश में भाजपा की सरकार थी और जब सभी आरोपियों को बरी किया गया तब भी भाजपा की ही सरकार थी।
  • जिस जज ने बलात्कारियों के पक्ष में फैसला दिया वो भँवरी देवी केस में छठे जज थे। उससे पहले इस केस से संबंधित 5 जजों की बदली की जा चुकी थी।
  • अदालत ने आरोपियों को बरी तो कर दिया लेकिन जिन आधारों पर बरी किया वो स्वभाव में घोर पितृसत्तात्मक थे।

 

आरोपियों को छोड़ने के लिए अदालत ने माना कि-

  • अलग-अलग जातियों के लोग एक साथ बलात्कार में शामिल नहीं हो सकते।  
  • दो आरोपी ऐसे थे जिनकी उम्र 60 वर्ष से अधिक थी; इतने अधिक उम्र के लोग बलात्कार नहीं कर सकते। 
  • बलात्कार असंभव था क्योंकि उसका पति मौजूद था। 
  • घटना में एक चाचा और उसके भतीजे पर भी आरोप है; ऐसा नहीं माना जा सकता कि चाचाऔर भतीजा एक साथ बलात्कार में शामिल होंगे। 

 

  • कोई भी व्यक्ति यह कह सकता है कि अदालत में न्याय देने के लिए बैठा व्यक्ति जज कहलाने लायक नहीं है। निर्णय कुछ भी आ सकता था लेकिन जिन आधारों को चुना गया वो एक राह चलते हुए व्यक्ति के लिए भी पचाना मुश्किल थे।
  • भँवरी देवी ने हमेशा की तरह हार नहीं मानी और राजस्थान उच्च न्यायालय में अपील की। महिला संगठनों के दबाव के बाद राज्य सरकार भी अपील में शामिल थी। यहाँ भी वर्ष 2007 तक मात्र एक बार ही भँवरी के केस की सुनवाई हो सकी।
  • आज 28 सालों बाद भी राजस्थान उच्च न्यायालय सुनवाई पूरी नहीं कर सका है। 2021 में भँवरी देवी के जीवन साथी, उनके पति मोहनलाल प्रजापति का भी देहांत हो गया। लेकिन भँवरी आज भी नहीं हारी। वो कहती हैं- “अकेले के लिए लड़ी थी क्या, पूरे देश के लिए लड़ी थी। मुझे तो न्याय नहीं मिला मगर मेरी बहन बेटियों को तो मिलेगा”। 
  • इस बीच भँवरी देवी को उनकी बहादुरी के लिए 1994 में प्रधान मंत्री नरसिम्हा राव द्वारा ₹25,000 की राशि से सम्मानित किया गया था। भँवरी ने महिलाओं के लिए संयुक्त राष्ट्र के चौथे विश्व सम्मेलन-1994, बीजिंग में हिस्सा लिया।  भँवरी को “असाधारण साहस, दृढ़ विश्वास और प्रतिबद्धता” के लिए नीरजा भनोट मेमोरियल पुरस्कार-1994 मिला।  2002 में, मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने उनके लिए घर के निर्माण के लिए ₹40,000 के अनुदान भी प्रदान किया। इस सबके बावजूद जो भँवरी को चाहिए था-न्याय- वो नहीं मिल सका।
  • भँवरी देवी को तो न्याय नहीं मिला लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने 1997 में अपने लैंडमार्क जजमेंट में  ‘विशाखा दिशानिर्देश’ जारी किए। महिलाओं के यौन उत्पीड़न को रोकने के लिए यह दिशानिर्देश मील का पत्थर साबित हुए हैं।
  • 1995 में जब भँवरी देवी ने राजस्थान हाईकोर्ट में डिस्ट्रिक्ट कोर्ट के खिलाफ याचिका डाली तभी महिला अधिकारों के लिए लड़ने वाले 4 स्वयंसेवी संगठनों(NGOs) ने सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका डाली जिसमें कहा गया कि भँवरी देवी राजस्थान सरकार की कर्मचारी थी। राजस्थान सरकार को उसकी सुरक्षा करनी चाहिए थी। तत्कालीन राजस्थान सरकार अपने कर्मचारी को सुरक्षा प्रदान करने में असफल रही जिसका खामियाजा भँवरी देवी को भुगतना पड़ा।
  • 1997 में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया और देश के सभी प्राइवेट व सरकारी कार्यस्थलों में महिलाओं के यौन-उत्पीड़न को रोकने के लिए दिशा-निर्देश जारी किए जिनका पालन आज भी किया जा रहा है, जिनका पालन न करने पर न्यायालय की अवमानना मानी जाती है।
  • भँवरी देवी का शोषण हर किसी ने किया। अमेरिकी फिल्ममेकर जग मूँदड़ा और अभिनेत्री नंदिता दास ने भी। जग मूँदड़ा ने भँवरी देवी पर सन 2000 में ‘बवंडर’ नाम की फिल्म बनाई। भँवरी को घर, पैसा सब का वादा किया। भँवरी ने कहा उसे सिर्फ न्याय चाहिए, पैसा और घर नहीं। अभिनेत्री नंदिता दास ने भँवरी को कहा कि वो उसकी बहन जैसी हैं लेकिन फिल्म रिलीज होने के बाद भँवरी को 1992 की घटना फिर से याद आने लगी। फिल्म में रेप पर फोकस किया गया था। गाँव वाले ‘भँवरी का रेप देखने’ के लिए फिल्म देखने जा रहे थे। भँवरी को ठग लिया गया था। नंदिता दास भी कभी दोबारा अपनी इस ‘बहन’ को देखने और पूछने नहीं आईं।

 

भँवरी देवी की कहानी शोषण की जीती जागती कहानी है। जिसमें शोषण करने वाले किरदार गाँव, समाज, परिवार, पुलिस, डॉक्टर, नेता, फिल्म मेकर और फिल्म अभिनेता तक के रूप में सामने आते रहे। भँवरी उसी गाँव में अपने उसी घर से अपने सम्मान की लड़ाई लड़ती रही जोकि आज भी जारी है। किसी को कहने में गुरेज नहीं होना चाहिए कि भँवरी देवी का मामला अदालती न्याय के खोखलेपन और समाज की धूर्तता का एक मिश्रित स्वरूप है। एक महिला प्रदर्शनकारी के हाथों में एक तख्ती थी जिसमें लिखा था “अदालत ने क्या किया/बलात्कारियों को छोड़ दिया”। ये एक ऐसी महिला के साथ किया गया जिसके कारण आज राजस्थान में बाल-विवाह की संख्या औंधे मुँह गिर चुकी है। पहली बार माँ बनने की औसत आयु लगभग 17 वर्ष पहुंची है। भँवरी ने अपना सबकुछ दे दिया और समाज ने उसका सबकुछ ले भी लिया लेकिन बदले में 4 लाइनों का न्याय भी नहीं दे सका।