वेदों को लेकर जवाहर लाल नेहरू का मानना था कि –
“बहुत से हिंदू वेदों को श्रुति ग्रंथ मानते हैं । खास तौर पर एक दुर्भाग्य की बात मालूम पड़ती है , क्योंकि इस तरह हम उनके सच्चे महत्व को खो बैठते हैं। वह यह कि विचार की शुरू की अवस्था में आदमी के दिमाग ने अपने को किस रूप में प्रकट किया था और वह कैसा अद्भुत दिमाग था। ‘वेद’ शब्द की व्युत्पत्ति ‘विद्’ धातु से हुई है, जिसका अर्थ है ‘जानना’ और वेदों का उद्देश्य उस समय की जानकारी को इकट्ठा कर देना था। उनमें बहुत सी चीजें मिली जुली हैं जैसे स्तुतियाँ है, प्रार्थनाएं हैं, यज्ञ की विधि है, जादू टोना है और बड़ी ऊंची प्रकृति संबंधी कविता है। उनमें मूर्ति पूजा नहीं है, देवताओं के मंदिरों की चर्चा नहीं है । जो जीवनी शक्ति और जिंदगी के लिए इकरार उनमें समाया हुआ है वह गैर मामूली है। शुरू के वैदिक-आर्य लोगों में जिंदगी के लिए इतनी उमंग थी कि वे आत्मा के सवाल पर ज्यादा ध्यान नहीं देते थे। एक अस्पष्ट तरीके से उन्हें इस बात का विश्वास था कि मौत भी कोई जीवन है।”