कैसी होगी राम राज्य की अर्थव्यवस्था, शिक्षा पद्धति और चिकित्सा व्यवस्था?

गाँधी जी कहते थे, कि रामराज्य में गरीबों की सम्पूर्ण रक्षा होनी चाहिए, लोकमत का आदर होना चाहिए

Credit- सत्याग्रह

आजकल टीवी डिबेट हो या मंच से नेताओ द्वारा दिया गया राजनीतिक भाषण या फिर तथाकथित धर्मगुरुओ द्वारा दिया जाने वाला ज्ञान, हर जगह लोग अपने अपने हिसाब से धर्म को परिभाषित करते है। सबका अपना तरीका है और सबका अपना निहित स्वार्थ। पर क्या आपने कभी ये सोचने या समझने की कोशिश की है कि वास्तव में राम राज्य होगा कैसा? कैसी होगी राम राज्य की अर्थव्यवस्था, शिक्षा पद्धति, चिकित्सा व्यवस्था और हर जरूरी रोजमर्रा की जरूरतें जो एक समाज को चलाने के लिए जरूरी होती है। जब भी कोई कहता है कि हम राम राज्य लाना चाहते है तो उसका तात्पर्य क्या है राम राज्य से? कोशिश करते हैं, रामराज्य की परिकल्पना को आज के परिदृश्य में समझने की।

राम राज्य की परिकल्पना को हम तुलसीदास द्वारा लिखी हुई इन दो लाइनों से समझने की कोशिश करते हैं।

दैहिक दैविक भौतिक तापा। राम राज्य नहिं काहूहि ब्यापा॥


 दैहिक


तुलसीदास के अनुसार रामराज्य में किसी को दैहिक कष्ट नहीं था। अर्थात राम राज्य की चिकित्सा व्यवस्था उच्च कोटि की रही होगी। हर जरूरतमंद को इलाज मिलता होगा। शिक्षा व्यवस्था ऐसी होगी जिससे उच्च कोटि के डॉक्टर बनते होंगे।

आज हमारे डॉक्टर जिन पर पूरे समाज को आरोग्य देने की जिम्मेदारी है, अपनी छोटी छोटी जरूरतों के लिए आंदोलनरत हैं। क्या हमारी रामराज्य की परिकल्पना यही है? आज जब हम राम राज्य की परिकल्पना करते हैं तो क्या हमारे जेहन में एक ऐसा मॉडल घूमता है जिसमें सबको समय पर उचित इलाज की व्यवस्था हो? अगर नहीं तो हमारा रामराज्य सिर्फ एक ढकोसला है और कुछ नहीं। 

 


 दैविक


तुलसीदास के अनुसार रामराज्य में कोई भी दैविक आपदा से त्रस्त नहीं था। अर्थात रामराज्य दैवीय आपदा से जूझ रहे लोगों की खुलकर मदद करता होगा। अगर वर्तमान परिदृश्य में देखें तो कोविड को हम एक दैवीय आपदा मान सकते हैं। क्या इस दैवीय आपदा से जूझ रहे लोगों की हमने मदद की या उन्हें उनके हाल पर छोड़ दिया?

क्या आप इसकी कल्पना भी कर सकते हैं कि रामराज्य में लोग ऑक्सीजन की कमी के कारण दम तोड़ दे और राजा चैन की नींद सोए? क्या रामराज्य दैवीय आपदा से जूझ रहे लोगो को भेड़ बकरियो की तरह भटकने के लिए छोड़ सकता है? जब आप रामराज्य की परिकल्पना करते हैं तो क्या वर्तमान व्यवस्था को इस कसौटी पर परखने की कोशिश करते हैं? अगर नहीं तो आपके रामराज्य की परिकल्पना सिर्फ एक छलावा है और कुछ नहीं।

 


भौतिक


तुलसीदास के अनुसार रामराज्य में कोई भी भौतिक दुख से दुखी नहीं था। अर्थात रामराज्य में सबको योग्यता अनुसार रोजगार के अवसर उपलब्ध रहे होंगे जिससे वो अपनी भौतिक जरूरतों को पूरा करता होगा/होगी। वर्तमान में देखें तो डॉक्टरेट की डिग्री लेकर लोग बैंक क्लर्क या स्कूल में चपरासी के लिए आवेदन कर रहे हैं। एक वेकेंसी पर हजारों हजार लोग आवेदन कर रहे हैं।

बीते दिनों वर्तमान रोजगार व्यवस्था को लेकर इलाहाबाद(आज का प्रयागराज) से लेकर पटना तक जो हड़कंप मचा सबने देखा। क्या रामराज्य में रोजगार मांगने पर ऐसे ही दंडित किया जाता होगा? क्या एक अदद जीवनयापन चलाने के लिए लोगों को ऐसे ही भटकना पड़ता होगा? क्या उस समाज का युवा भी ऐसे ही दर दर की ठोकरें खाता होगा? अगर नहीं तो वर्तमान में हम किस रामराज्य की बात कर रहे हैं। रामराज्य का मतलब गरीबी का उन्मूलन और आपसी सौहार्द्र की स्थापना है।

दांडी मार्च के दौरान 20 मार्च, 1930 को गांधीजी ने हिंदी पत्रिका ‘स्वराज्य और रामराज्य’ शीर्षक से एक लेख लिखा। बकौल गांधीजी, रामराज्य में गरीबों की सम्पूर्ण रक्षा होनी चाहिए, लोकमत का आदर होना चाहिए। आर्थिक असमानता रामराज्य की राह में सबसे बड़ा रोड़ा है। कुछ को करोड़ों और बाकियों को सूखी रोटी भी नहीं।

वर्तमान में रामराज्य की जरूरत है लेकिन उस रामराज्य की नहीं जिसे एक मजहबी पहचान से जोड़ा गया है। अगर आपका रामराज्य उपरोक्त संदर्भ की कसौटी पर खरा नहीं उतरता, तो बदलिए अपनी परिभाषा को और सोचिए कि कैसा समाज आप देने जा रहे हैं अगली पीढ़ी को। शायद राम आज होते तो वो भी इस तथाकथित ‘रामराज्य’ को कभी नहीं स्वीकारते।