अस्पृश्यता हिंदू धर्म का अविभाज्य अंग नहीं है, बल्कि एक ऐसा अभिशाप है जिसके साथ युद्ध करना प्रत्येक हिंदू का पवित्र कर्त्तव्य है। इसलिए ऐसे सब हिंदूओं को, जो इसे पाप समझते हैं, इसके लिए प्रायश्चित करना चाहिए। इसके लिए उन्हें अछूतों के साथ भाईचारा रखना चाहिए, प्रेम और सेवा की भावना से उनके साथ संबंध स्थापित करना चाहिए, ऐसे कार्यों से अपने को पवित्र हुआ मानना चाहिए, उनके कष्ट दूर करने चाहिए, उन्हें युगों की दासता से उत्पन्न हुई जहालत और दूसरी बुराइयों पर विजय प्राप्त करने में धीरजपूर्वक मदद देनी चाहिए और दूसरे हिंदूओं को वैसा ही करने की प्रेरणा देनी चाहिए।
मंगल प्रभात 1945; पृ 32