सभी धर्मों में सत्य का दर्शन होता है, परंतु सब अपूर्ण हैं और सब में भूलें हो सकती हैं। दूसरे धर्मों का आदर करने में उनके दोषों के प्रति आँखें मूँदने की ज़रुरत नहीं। हमें स्वयं अपने धर्म के दोषों के प्रति खूब ज़ागरूक रहना चाहिए। लेकिन इस कारण उसे छोड़ नहीं देना चाहिए, बल्कि उन दोषों को दूर करने का प्रयत्न करना चाहिए। सब धर्मों के प्रति समभाव रखते हुए हम दूसरे धर्मों की, लेने जैसी हर वस्तु को अपने धर्म में समाहित करने में संकोच नहीं करेंगे, बल्कि उसे ग्रहण करना अपना फर्ज समझेंगे।
-मंगल प्रभात