अहिंसा और कायरता का फ़र्क

स्वतंत्रता प्राप्ति और शोषण के विरुद्ध आवाज उठे, धूल उड़े लेकिन हिंसा किसी भी रूप में शामिल न हो, यह विचार गांधी, किंग और मंडेला को पिछली कई सदियों के महानतम व्यक्तित्वों में शुमार कर देता है।

महावीर जैन के लिए अहिंसा जहां एक दार्शनिक और नैतिक जीवन मूल्य था वहीँ गांधी, किंग और मंडेला के लिए अहिंसा एक सामाजिक और राजनीतिक रणनीति भी थी। ऐसी रणनीति जिस में हाक़िम से आँख में आँख डालकर अपनी बात रखने और मनवाने की शक्ति थी, बिना किसी की हत्या के।



अहिंसा के विषय पर चर्चाओं में अक्सर हम गांधी, मार्टिन लूथर किंग और नेल्सन मंडेला के नाम सुनते हैं। वे सब अपने समय के महत्वपूर्ण राजनेता थे जिनकी सोच, निर्णयों और तरीकों को अहिंसा के जिस संदर्भ में हम समझते रहे हैं वह था, किसी भी बदलाव के लिए हथियार ना उठाना। पर अहिंसा का तात्पर्य क्या सिर्फ़ हथियारों के परिप्रेक्ष्य में ही है या उसके और भी आयाम हैं? क्या महावीर जैन द्वारा व्याख्यायित अहिंसा गांधी, किंग और मंडेला की अहिंसा से अलग है?

वास्तव में क्या होती है अहिंसा?

“अहिंसा” शब्द के शाब्दिक अर्थ से यह तो साफ़ है कि जहाँ हिंसा ना हो पर उसके पहले यह समझना भी ज़रूरी है कि हिंसा सिर्फ़ किसी की हत्या करना ही नहीं है बल्कि हिंसा विभिन्न स्वरूपों में हम में और हमारे समाज में है। गाय को न मारना अहिंसा है पर गाय का सेवन करने वाले की हत्या कर देना हिंसा ही है जिसे हत्यारा अपने गौ-प्रेम से न्यायोचित नहीं ठहरा सकता – ना तो तार्किक और ना ही संवैधानिक रूप से। किसी दलित पर हाथ न उठाना अहिंसा है पर उसे दुत्कारना, रोज़मर्रा के अपने संवादों में उसकी जाति को गाली की तरह प्रयोग करना हिंसा का ही एक रूप है।

 

मूल रूप से अहिंसा का मतलब है अपने विरोधी व्यक्ति, सोच या स्थिति का शारीरिक, मानसिक, धार्मिक और सामाजिक इत्यादि किसी भी रूप में बिना हानि पहुंचाए दृढ़ता से सामना करना। फ़िर यह हो सकता है कि एक सहमति ना बने या एक निष्कर्ष ना निकले पर अपनी सोच, अपने उद्देश्यों और अपने तरीकों में हानि ना पहुंचाने की दृढ़ता रहे।

 

समाज अहिंसा के रास्ते बदले, इसके लिए आवश्यक है कि उस समाज का हर भागीदार यह समझे कि हिंसा सिर्फ़ एक क्षणिक मरहम है अपने क्रोध, अपनी असुरक्षा का, जो उपजते हैं अपने अंदर की व्यग्रता और उत्कंठा से। और यह भी समझे कि व्यग्रता और उत्कंठा इंसानी जज़्बात हैं जिनके सिलसिलेवार निवारण से ही क्रोध और असुरक्षा का निवारण संभव है। एक दक्षिणपंथी (किसी भी धर्म संबंधित) या एक अस्थिर समाज के मूल मुद्दों को हल किये बिना उसके भागीदारों को अहिंसक बनाने के प्रयास निष्फल ही होंगे। और व्यक्तिगत रूप से अहिंसक हुए बिना सामाजिक स्तर पर अहिंसा अमल में नहीं लाई जा सकती।

अहिंसा के रणनीतिकार गांधी 

गांधी यह जानते थे। अहिंसा को सामाजिक बदलाव के लिए प्रयोग में लाने के संदर्भ में गांधी एक शानदार रणनीतिकार रहे हैं। बौद्ध धर्म, हिंदू धर्म और जैन धर्म में अहिंसा की विभिन्न व्याख्याओं को अपना कर, उन्हें अपनी सोच और कार्यशैली में अमल में ला कर उन्होंने अंग्रेज़ो के विरुद्ध एक बेहद प्रभावशाली हथियार बनाया। वह कहते थे अहिंसा असल में साहस की सर्वोच्च अभिव्यक्ति है।


अंग्रेज़ो के साथ उनके संवाद, असहमतियां, उनके विरुद्ध आंदोलन उन्हें नीचा दिखाने के लिए नहीं बल्कि उन्हें यक़ीन दिलाने के लिए थे कि यह देश उन्हें छोड़ना ही होगा। यक़ीन दिलाने के उनके तरीकों में सबसे उल्लेखनीय था असहयोग और सत्याग्रह – असत्य के विरुद्ध सत्य का विनम्र पर दृढ़ आग्रह।


वह इस बात में गहरा विश्वास रखते थे कि बाहरी बुराइयों और शत्रु से लड़ने से पहले अपने स्वयं के भय और असुरक्षाओं से लड़ना और उन पर विजय पाना आवश्यक है।गांधी की अहिंसा में सेना नहीं, सैन्यवाद ग़लत था। वह कायरता और अहिंसा में फ़र्क़ समझते थे।

गांधी और मंडेला 

गांधी से प्रेरित मंडेला के जेल जीवन की शुरुआत हिंसा में विश्वास रखने वाले एक व्यक्ति के तौर पर हुई थी जिस पर तत्कालीन सरकार को हिंसक तरीकों से विस्थापित करने का आरोप था। उस वक़्त के मंडेला को यह विश्वास था कि रंगभेद के ख़िलाफ़ हिंसक प्रतिरोध ही सबसे प्रभावी औज़ार है सामाजिक बदलाव का और इसका कोई विकल्प है ही नहीं।

पर जेल के 27 वर्षों के दौरान वे यह समझे कि उत्पीड़क और उत्पीड़ित दोनों ही असल में ग़ुलाम होते हैं – उत्पीड़क अपने क्रोध, पूर्वग्रह और नफ़रत का ग़ुलाम है और उत्पीड़ित तो दास है ही। इसीलिए जेल से निकलने के पश्चात उनका ध्येय सबकी स्वतंत्रता था, सिर्फ़ श्याम (काले) वर्ग की नहीं। जो रंगभेद सदियों से चल रहा था उसके उन्मूलन की अहिंसक राह लंबी और कठिन थी शायद इसीलिए उनकी जीवनी का नाम Long Walk to Freedom था।

गांधी और किंग

गांधी से प्रेरित एक और महत्वपूर्ण आन्दोलनकारी मार्टिन लूथर किंग थे जिनका अफ्रीकी-अमेरिकी नागरिक अधिकारों के संघर्ष में और उन के उत्थान में अभूतपूर्व योगदान रहा है। उन्हें अमेरिका का गाँधी भी कहा जाता है। उनका इस बात में गहरा विश्वास था कि सदियों की ग़ुलामी और पक्षपात को लोगों को जोड़े बिना नहीं समाप्त किया जा सकता और अहिंसक नागरिक प्रतिरोध, सत्याग्रह और असहयोग में हिंसक प्रतिरोधों की तुलना में कहीं अधिक लोगों को जोड़ने की क्षमता है।

वह कहते थे कि साम्राज्यवाद सिर्फ़ एक भ्रम पैदा करता है कि वह अपनी प्रजा का भला कर रहा है पर असल में वह सिर्फ़ उनका शोषण कर रहा होता है। अहिंसा, सत्याग्रह और असहयोग के रास्ते से अमेरिका के आम जनमानस में यह भ्रम उन्होंने तोड़ा। “I have a dream” के उनके शब्दों में अफ़्रीकी-अमरीकी वर्ग के लिए समान आर्थिक और सामाजिक व्यवस्था का सपना था जो Civil Rights Act 1964, Voting Rights Act 1965 और Fair Housing Act 1968 के कानूनी संशोधनों के रूप में साकार भी हुआ।

समय और उसकी आवश्यकता के हिसाब से अहिंसा की परिभाषा के अमल में परिवर्तन आते रहे हैं। महावीर जैन के लिए अहिंसा जहां एक दार्शनिक और नैतिक जीवन मूल्य था वहीँ गांधी, किंग और मंडेला के लिए अहिंसा एक सामाजिक और राजनीतिक रणनीति भी थी। ऐसी रणनीति जिस में हाक़िम से आँख में आँख डालकर अपनी बात रखने और मनवाने की शक्ति थी, बिना किसी की हत्या के।

 

पिछले 100 वर्षों के इतिहास में अहिंसक आंदोलनों के द्वारा मिली सफलता हमें उपरोक्त उल्लेखित देशों – भारत, अमेरिका, दक्षिण अफ्रीका – के अलावा मिस्त्र (2011), चेकोस्लोवाकिया (1989), ट्यूनीशिया (2011), पूर्वी जर्मनी (1989-90), पोलैंड (1989) जैसे कई उदाहरणों में मिलती है।वह इसलिए क्योंकि शायद लोग और हुकूमतें धीरे-धीरे यह समझ रहे हैं कि लड़ाई तो समुदायों या सरकारों के नुमाइंदो के बीच लड़ी जाती है पर बाक़ी जो अन्य पीड़ित होते या मरते हैं वह आंकड़ों में सिर्फ़ collateral damage (सामुहिक निषेध) बन कर रह जाते हैं।

 

 

(यह लेखक के निजी विचार हैं)