क्या भारत में धर्मनिरपेक्षता की अवधारणा विलुप्त होने की कगार पर आ गई है?

शब्दों में अर्थ छुपे होते हैं, इतिहास भी, और इरादे भी। “धर्मनिरपेक्ष” के शाब्दिक अर्थ को समझें तो इस में 2 शब्द छुपे हैं – धर्म और पक्ष – और इन दोनों शब्दों को जोड़ता है निः – जिस से पूरा अर्थ

भारत विभाजन: अंग्रेज़ी कुटिलता या हिंदू-मुस्लिम धर्मांधता?

मुस्लिम लीग के नेताओं की परिकल्पना यह थी कि पाकिस्तान मुख्यतः एक मुस्लिम बाहुल्य देश होगा जिसे हिन्दुस्तान का हर मुस्लिम अपना समर्थन देगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ क्योंकि भारत के समस्त मुसलमानों ने इसके गठन का समर्थन नहीं किया। बंटवारा चाहे

‘प्यासा’ और ‘रॉकस्टार’: सामाजिक वास्तविकताओं को उकेरती कहानियाँ

हम प्रशासनिक ग़ुलामी से तो आज़ाद हो गए थे लेकिन सामाजिक और व्यक्तिगत बेड़ियों से नहीं। सामंती मानसिकता, जातिवाद, अमीर-ग़रीब का फ़र्क़, धार्मिक उन्माद, जो सदियों से मज़बूती से टिके हुए थे, वह एक दशक में कैसे जा सकते थे? और साथ

क्या वर्तमान भारत की शिक्षा व्यवस्था भारतीयों के हित में है?

प्राचीन काल में गुरुकुल प्रणाली ने क़िताबी ज्ञान से ज़्यादा किसी काम को करके उस अनुभव से उसके बारे में सीखने पर ध्यान केंद्रित किया। वहां आज़ादी थी आपकी सोच, आपके हुनर को पहले तलाशने की और फ़िर उसे निखारने की। क्लास

जनसंख्या वरदान कैसे बनें?

जनसंख्या विस्फोट लोगों को आमदनी, स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा इत्यादि की पर्याप्त उपलब्धता ना होने के कारण इंसान मेहनत तो अधिक करता है जिस से उसकी आमदनी बढ़ती है लेकिन बढ़ी हुई आमदनी सीमित स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा, रोज़गार इत्यादि से मेल नहीं खा

लाखों कोविड मौतें: उदासीन, निष्क्रिय और अकुशल नेतृत्व का परिणाम?

अन्य विश्व की तरह भारत में भी वैक्सीन के लिए प्रयास जारी थे। संक्रमण के मामलों में कुछ महीनों के पश्चात गिरावट आई पर वह सरकार के प्रयासों से नहीं बल्कि हर्ड इम्युनिटी से था। सरकार का ध्यान हमेशा की तरह कुछ

फ़ैसला आपका है, इतिहास से धार्मिक वैमनस्य सीखें या आपसी प्रेम?

देश किसी की व्यक्तिगत संपत्ति नहीं था और बंटवारे की लाइन “रैडक्लिफ़ लाइन” पर समझौते पर कांग्रेस की ओर से नेहरू और अबुल कलाम आजाद, मुस्लिम लीग का प्रतिनिधित्व करने वाले जिन्ना, दलितों की ओर से अंबेडकर, और सिखों की ओर से

कहीं आप न्याय के लिए खतरा तो नहीं?

रंगभेद में देश में काले रंग के लोगों के लिए “कल्लू”, “अफ्रीकन”, “नीग्रो” इत्यादि। ऐसे लोगों मज़ाक बनना, उन पर रंग गोरा करने पर ज़ोर, रंग गोरा करने के लिए सौन्दर्य-प्रसाधन की पूरी इंडस्ट्री और विज्ञापन और विवाह के लिए विज्ञापनों और

क्या हिन्दू धर्म का वजूद गाय की चार टांगों पर टिका है?

दामोदर सावरकर, जिसे आज के दक्षिणपंथी गौ रक्षक पूरी कट्टरता से पूजते हैं, ख़ुद गाय को माँ का दर्जा देने के इस हद तक ख़िलाफ़ थे कि व्यंग्यात्मक भाव में कहते थे कि गाय धर्म विशेष की नहीं बल्कि सिर्फ़ एक बछड़े

अहिंसा और कायरता का फ़र्क

महावीर जैन के लिए अहिंसा जहां एक दार्शनिक और नैतिक जीवन मूल्य था वहीँ गांधी, किंग और मंडेला के लिए अहिंसा एक सामाजिक और राजनीतिक रणनीति भी थी। ऐसी रणनीति जिस में हाक़िम से आँख में आँख डालकर अपनी बात रखने और

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