जनसंख्या विस्फोट लोगों को आमदनी, स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा इत्यादि की पर्याप्त उपलब्धता ना होने के कारण इंसान मेहनत तो अधिक करता है जिस से उसकी आमदनी बढ़ती है लेकिन बढ़ी हुई आमदनी सीमित स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा, रोज़गार इत्यादि से मेल नहीं खा पाती।
ग़रीबी हो, अशिक्षा हो, खाद्य समस्या हो, बेरोज़गारी हो, महंगाई हो या फ़िर हाल में देखे गए कोविड महामारी का कुप्रबंधन हो – हमारी चर्चाओं में अक़्सर जनसंख्या को वजह बताया जाता है, जो कि पूरी तरह से ग़लत तो नहीं पर पूरी तरह से सही भी नहीं है।
निस्संदेह, जनसंख्या कई सामाजिक-आर्थिक समस्याओं को पैदा करती और बढ़ाती है, लेकिन अगर तथ्यों को देखें तो वही जनसंख्या विस्फोट एक वरदान भी हो सकता है।
कैसे?
जनसंख्या विस्फोट के समस्या से वरदान होने तक के सफ़र को हम 4 हिस्सों में समझ सकते हैं:
1. जनसंख्या बढ़ने के कारण
2. उस से होने वाली समस्याएं
3. उसे रोकने के तरीक़े
4. जनसंख्या विस्फोट वरदान कैसे?
जनसंख्या विस्फोट होने के कारण
जनसंख्या बढ़ने के सामान्यतः निम्न कारण होते हैं:
1. बढ़ती जन्म दर (Birth Rate) और घटती मृत्यु दर (Mortality Rate) – स्वास्थ्य सेवाओं में विज्ञान के योगदान से पिछले 100 वर्षों में जन्म दर (प्रति 1,000 महिलाओं पर एक वर्ष में जीवित जन्मों की संख्या) में बढ़ोत्तरी और मृत्यु दर (एक निश्चित अवधि में मौतों की संख्या) में गिरावट हुई है।
2. शिक्षा का अभाव और निरक्षरता – पुरुषों और महिलाओं दोनों में बाल विवाह, गर्भ नियोजन और अधिक जनसंख्या के परिणामों के बारे में जागरूकता की कमी।
3. कम उम्र में शादी – कम उम्र में शादी का सीधा अर्थ है और भी अधिक महिलाओं का विवाह, जितने अधिक विवाह उतनी अधिक संभावना और भी अधिक बच्चों के जन्म की।
4. धार्मिक कारणों से परिवार नियोजन पर प्रतिबंध – कुछ धर्मों में गर्भनिरोधक के उपयोग पर प्रतिबंध।
5. प्रवास (Migration) – सामाजिक, धार्मिक और आर्थिक कारणों से एक स्थान से दूसरे स्थान पर लोगों के प्रवास से भी उन क्षेत्रों/देशों की जनसंख्या में वृद्धि होती है। अनियंत्रित प्रवास जनसंख्या को उस बिंदु तक ले जा सकता है जहां उन देशों के पास अपनी ही जनसंख्या के लिए आवश्यक संसाधन नहीं हैं, ख़ासकर वह देश जहां आप्रवासन (immigration) संख्या उत्प्रवास (emigration) संख्या से कहीं अधिक है।
6. ग़रीबी – एक ग़रीब परिवार में अधिक बच्चों का अर्थ है कमाने वाले अधिक हाथ जिसका सीधा अर्थ है अधिक आमदनी।
अधिक जनसंख्या से होने वाली समस्याएं
जनसंख्या वृद्धि का सीधा असर देश के संसाधनों पर तो होता ही है पर साथ ही परोक्ष रूप से होने वाली समस्याएं भी हैं:
1. अति-शहरीकरण और उस से संभावित बेरोज़गारी, प्रति व्यक्ति आय में कमी, ग़रीबी आदि
2. प्राकृतिक संसाधनों के अत्यधिक दोहन से पर्यावरण को नुक़सान
3. प्रति व्यक्ति भोजन की उपलब्धता में कमी के कारण कुपोषण और भुखमरी
4. मौजूदा हाउसिंग सेक्टर, ट्रांसपोर्ट सिस्टम, चिकित्सा सुविधाओं पर दबाव
5. महंगाई
6. सारी आबादी के लिए पीने के साफ़ पानी की पर्याप्त मात्रा सुनिश्चित ना हो पाना
7. आपदाओं और महामारी होने पर मृतकों की अधिक संख्या
8. अधिक खेती और जंगलों की अधिक कटाई
इनके इतर और भी तमाम व्यक्तिगत, सामाजिक और पर्यावरण संबंधित ख़तरे हैं। लेकिन ग़ौर करने पर आप पाएंगे कि यह सब कहीं ना कहीं एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। मिसाल के तौर पर एक निश्चित जगह पर रहने वाले लोग जैसे जैसे बढ़ते जाएंगे उसी के अनुसार वहां के संसाधनों (रोज़गार, स्वास्थ्य सेवा, परिवहन, पानी, खाद्यान्न, रहने की जगह वगैरह पर फ़र्क पड़ेगा जिस से आगे और भी समस्याएं पैदा होने की संभावना बढ़ जाती है – मसलन एक ही नौकरी के लिए अधिक आवेदक पर भ्रष्टाचार और नागरिक अशांति की स्थिति हो सकती है)।
जनसंख्या विस्फोट लोगों को आमदनी, स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा इत्यादि की पर्याप्त उपलब्धता ना होने के कारण इंसान मेहनत तो अधिक करता है जिस से उसकी आमदनी बढ़ती है लेकिन बढ़ी हुई आमदनी सीमित स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा, रोज़गार इत्यादि से मेल नहीं खा पाती।
सच यह है कि भारत एक ऐसी महाशक्ति है जहां विलासिता का आनंद तो कुछ ही ले पाते हैं जबकि अधिकतर आबादी एक समय के भोजन के लिए संघर्ष कर रही है।
जनसंख्या वृद्धि को कैसे नियंत्रित किया जा सकता है?
जनसंख्या वृद्धि के सफ़ल नियंत्रण और अधिक जनसंख्या के एक वरदान होने में महीन फासला भी है और अहम् संबंध भी। पर पहले यह समझना ज़रूरी है कि जनसंख्या वृद्धि के सफ़ल नियंत्रण के तरीक़े क्या हो सकते हैं।ध्यान देने पर हम यह समझ सकते हैं कि किसी समस्या का समाधान कभी कभी उस समस्या के मूल कारणों में भी छुपा हो सकता है। सिर्फ़ समझ और नीयत का ख़ेल है। जनसंख्या बढ़ती तो एक एक इंसान करके है पर बढ़ती हर स्तर पर है (व्यक्तिगत और राष्ट्रीय) इसलिए समाधान भी उन्हीं स्तरों पर मुमकिन हैं।
व्यक्तिगत
1. कम बच्चे
2. गोद लेना सामाजिक स्तर पर “भी” एक बेहतरीन क़दम है
3. जनसंख्या के मुद्दों के बारे में खुद को और परिवार को शिक्षित करना
4. अपने किशोर और वयस्क बच्चों में सेक्स और गर्भनिरोधक के बारे में समय रहते शिक्षित करना
5. जनसंख्या और पर्यावरण के बीच संबंध के बारे में समाज में जागरूकता फैलाना। ऐसा करने के कई तरीके हो सकते हैं – सोशल मीडिया, अखबारों/पत्रिकाओं/संगठनों/ एनजीओ में अपनी राय देना
राष्ट्रीय
1. न्यूनतम 16 वर्ष की आयु तक शिक्षा अनिवार्य करना (लड़के और लड़की दोनों के लिए) और उसके लिए आवश्यक सहायता प्रदान करना।
2. बाल विवाह को प्रतिबंधित करना और विवाह की कानूनी आयु (न्यूनतम 18 वर्ष) निर्धारित करना।
3. आधुनिक गर्भनिरोधक को अनिवार्य और नसबंदी (जो चाहे) को मुफ्त और हर जगह उपलब्ध कराना – ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में।
4. परिवार नियोजन कार्यक्रमों के लिए पर्याप्त आर्थिक और ढांचागत सहायता।
5. चिकित्सा सुविधाओं को बेहतर करना जिससे कि शिशु और बाल मृत्यु दर कम हो।
6. जनसंख्या और पर्यावरण के मुद्दों और यौन शिक्षा को बुनियादी शैक्षिक पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाना।
7. गर्भपात को वैध करना।
8. एक अनुकूल जनसंख्या निर्धारित करके उसके अनुसार जनसंख्या नीति बना कर काम करना।
9. देश के विभिन्न क्षेत्रों में जनसंख्या का वितरण मुमकिन करना
लेकिन उपर्युक्त उपाय रोजगार, भोजन, राशन, वेतन, आयु और सेवानिवृत्ति की स्थिति, बुजुर्गों का जीवन स्तर – इन सब पहलुओं पर ध्यान दिए बिना विफ़ल होंगे।हमें यह समझना होगा कि कानून बनाने और कानून लागू करने में बड़ा अंतर है। इसलिए कानून बना कर उसका सख़्ती से पालन करवाना भी एक चुनौती है।
क्या जनसंख्या एक वरदान भी हो सकती है?
निश्चित रूप से – यदि व्यक्तिगत, सामाजिक और प्रशासनिक स्तरों पर व्यावहारिक कदम उठाए जाते हैं तो-
3 वयस्कों और 6 बच्चों के परिवार की कल्पना करें। यदि सभी 3 वयस्क कुशल हैं और कमाते हैं तो उन 6 बच्चों का जीवन बेहतर होगा और परिवार के लोगों की कुल संख्या कोई मायने नहीं रखती। लेकिन, उस परिवार में अगर सिर्फ एक वयस्क कमाता है तो अन्य 2 वयस्क और 6 बच्चे न केवल उस एक वयस्क पर दायित्व बन जाते हैं बल्कि उनके जीवन की गुणवत्ता भी प्रभावित होती है।
भारतीय अर्थव्यवस्था खपत आधारित अर्थव्यवस्था है और हमारी अर्थव्यवस्था को सही रास्ते पर रखने के लिए पर्याप्त मांग है इसलिए अगर हम शिक्षा, स्वास्थ्य और आधुनिक तकनीक (विभिन्न उद्योग और कृषि) में अच्छा निवेश करते हैं तो एक बड़ी आबादी को उत्पादक संपत्ति में बदल दिया जा सकता है।
भारत दुनिया में कुशल श्रमिकों का सबसे बड़ा देश है। जहां कई देशों की अधिकतर जनता बूढ़ी हो रही है वहीँ भारत एक जवान देश है जहां क़रीब 60% आबादी युवा है। एक युवा आबादी भारत जैसे देश में एक विशाल विविधता प्रदान करती है भाषाओं, शिक्षा (स्कूली और तकनीकी) और कौशल में। आईटी, ऑटोमोबाइल, खाद्य पदार्थ, मोबाइल फोन आदि के सबसे बड़े बाज़ारों में भारत है।
निर्भरता अनुपात (बेरोज़गार और कार्यशील जनसंख्या का अनुपात) एक महत्वपूर्ण आंकड़ा है। यह जैसे-जैसे गिरता है, एक राष्ट्र की बचत दर आम तौर पर बढ़ जाती है, जो उत्पादकता और समृद्धि को बढ़ावा देती है। व्यक्तिगत बचत बढ़ती है और औद्योगिक निवेश के लिए आंशिक संसाधन के रूप में काम करती है जो आर्थिक विकास को बढ़ावा देती है। सस्ते श्रम का उचित उपयोग नियोजन और कौशल विकास के माध्यम से किया जा सकता है ताकि घरों में निर्भरता अनुपात को कम किया जा सके और जीवन स्तर में सुधार किया जा सके।
भारत की श्रम शक्ति 2025 तक 300 मिलियन होने की उम्मीद है जो कि देश के उद्योगों और कृषि में महत्वपूर्ण उपकरण बन सकती है। उद्योगों के बढ़ने का सीधा अर्थ रोज़गार का बढ़ना भी है। एक विशाल कार्य-कुशल आबादी का अर्थ है कि विदेशी कंपनियों का नई परियोजनाओं की पेशकश करने का स्वाभाविक झुकाव। हर हाथ, भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए कमाई का हाथ बन सकता है।उपरोक्त सभी बातों को ध्यान में रखते हुए, मेरा दृढ़ विश्वास है कि यदि इरादा सही है तो जनसंख्या, एक वरदान भी हो सकती है।
(यह लेखक के निजी विचार हैं)