मैं अहिंसा के द्वारा, घृणा के विरुद्ध प्रेम की शक्ति का उपयोग करके लोगों को अपने विचार का बनाकर, आर्थिक समता सम्पादन करूंगा। मैं तब तक ठहरा नहीं रहूंगा जब तक सारे समाज को बदल कर अपने खयाल का न बना लूं। मैं तो सीधे अपने जीवन से इसकी शुरुआत कर दूंगा।
कहना न होगा कि अगर मैं पचास मोटर गाड़ियों अथवा दस बीघा जमीन का भी मालिक हूं, तो मैं अपनी कल्पना की आर्थिक समानता सिद्ध करने की आशा नहीं रख सकता। इसके लिए मुझे गरीब से गरीब आदमी के स्तर पर आ जाना पड़ेगा। पिछले पचास या उससे ज्यादा वर्षों से मैं यही करने का प्रयत्न कर रहा हूं।
हरिजन, 31-03-1946