हमें पूँजीपतियों के लिए गरीबों के हितों का बलिदान हरगिज नहीं करना चाहिए। हमें उनका खेल नहीं खेलना चाहिए। लेकिन हमें उन पर उस हद तक भरोसा करना ही चाहिए, जिस हद तक वे अपना लाभ गरीबों की सेवा में अर्पित करने की क्षमता रखते हैं। वे ऊंचे दर्जे की अपील से अछूते नहीं रह सकते। मेरा सदा ही यह अनुभव रहा है कि सद्भावपूर्ण वाली बात कही जाए,तो वह उनके दिलों पर असर जरूर करती है। अगर हम उनका विश्वास प्राप्त कर लें और उन्हें निश्चिंत कर दें, तो हम देखेंगे कि वे गरीबों को धीरे-धीरे अपनी दौलत में हिस्सेदार बनाने के विरुद्ध नहीं है।