“लियाकत अली साहब और हमारे प्रधानमंत्री में भी यही समझौता हुआ है न, कि जो पाकिस्तान जाना चाहें वे पाकिस्तान चले जाएँ; लेकिन लियाकत अली साहब, सरदार और जवाहरलाल भी किसी को मजबूर नहीं कर सकते। कोई कानून नहीं है।
इसीलिए जो मुसलमान यहाँ रहते हैं उनको हमें प्रेम से रखना चाहिए। अगर मैं जिंदा रहूँ तो इसके सिवाह कोई और दृश्य नहीं देखना चाहता।
पहले मैं 125 वर्ष जिंदा रहने की बात सोचता था, लेकिन अब वो भूल गया हूँ। अगर हिंदुस्तान का नसीब खराब है तो ईश्वर मुझे उठा ले। और अगर उसका नसीब बुलंद है और पल्टा होने वाला है, जोकि होना तो चाहिए, तो तू मुसलमान के दिल को बदल दे और उनका दिल तेरे से ही भर दे।
खुदा का नाम तो वो लेते हैं लेकिन खुदा का काम नहीं करते। इसी तरह से अगर हिन्दू भी कृष्ण या राम का नाम तो लें लेकिन पीछे कत्ल करें और एक दूसरे को काटें तो वह राम का काम नहीं कहा जा सकता।”
(31 October, 1947)