स्वराज का अर्थ केवल अंग्रेज़ी हुकूमत से मुक्ति नहीं है। यह एक ऐसा राज्य है, जिसमें हर व्यक्ति को अपने अस्तित्व का अर्थ समझने का अवसर मिले। स्वराज आत्म-नियंत्रण है, यह आत्म-साक्षात्कार है। इसका मतलब यह नहीं कि हम केवल बाहरी शासकों को हटा दें और उनकी जगह अपने ही लोगों को बिठा दें। अगर हमारे अपने शासक भी अन्याय और शोषण करें, तो वह स्वराज नहीं है। सच्चा स्वराज तभी संभव है जब हर व्यक्ति आत्म-निर्भर और आत्म-शुद्ध हो। हमें अपने नैतिक और सामाजिक कर्तव्यों को निभाते हुए स्वतंत्रता प्राप्त करनी है।
स्वदेशी स्वराज का मूलभूत अंग है। स्वदेशी का अर्थ केवल यह नहीं है कि हम अपने देश में बने हुए उत्पादों का उपयोग करें, बल्कि यह एक आदर्श है, जो हमें आत्मनिर्भरता का पाठ पढ़ाता है। जब तक हम विदेशी वस्त्रों और वस्तुओं पर निर्भर रहेंगे, तब तक सच्चा स्वराज नहीं मिलेगा। खादी इस विचार का प्रतीक है। खादी केवल वस्त्र नहीं है, यह एक आंदोलन है, जो हमें गरीबी और बेरोजगारी के अभिशाप से मुक्त कर सकता है। हर व्यक्ति के हाथों में खादी का चरखा देकर, हम केवल वस्त्र नहीं बनाते, बल्कि हम आत्म-निर्भरता की शिक्षा देते हैं।
स्वराज और स्वदेशी का यह संघर्ष केवल आर्थिक मुद्दा नहीं है, यह नैतिक और आध्यात्मिक मुद्दा भी है। स्वदेशी का पालन करने का अर्थ यह भी है कि हम अपने अंदर त्याग और संयम का विकास करें। हमें यह समझना होगा कि केवल भौतिक वस्तुओं के संग्रह से हमें सच्चा सुख नहीं मिलेगा। जो व्यक्ति अपनी आवश्यकताओं को कम करता है और आत्म-निर्भरता की ओर बढ़ता है, वही सच्चे स्वराज के लिए पात्र बनता है।
स्वराज केवल नेताओं के हाथों में नहीं है, यह हर नागरिक की जिम्मेदारी है। जब तक हर व्यक्ति अपने जीवन में सत्य, अहिंसा और स्वदेशी को आत्मसात नहीं करता, तब तक स्वराज अधूरा रहेगा। मेरा मानना है कि स्वराज का रास्ता चरखे से होकर जाता है। यदि हर गांव में लोग चरखा चलाएं और खादी पहनें, तो हम आर्थिक स्वतंत्रता की ओर बढ़ सकते हैं। हमें अपनी मानसिकता बदलनी होगी और यह समझना होगा कि सच्चा स्वराज केवल तभी संभव है जब समाज के सबसे कमजोर व्यक्ति को न्याय मिले।
नवजीवन, 5 जून 1927