भारत जोड़ो यात्रा के माध्यम से, उस नफरत को लोगों के दिल से हटाना फिर सद्भाव की नई सीख देना यह जरूरी प्रयास होगा। इसके परिणाम क्या होंगे, क्या इस यात्रा के पूर्व से पश्चिम जाने का आधार, आने वाले चुनावों में कांग्रेस के चुनावी नतीजों पर आधारित होगी?
दंडकारण्य में ऋषियों द्वारा राम को दानव वध के लिए प्रेरित करने पर रामायण के अरण्य कांड में सीता प्रभु राम को चेतावनी स्वरूप एक किस्सा सुनाती है ” काफी समय पहले एक ऋषि इस दंडक अरण्य में तपस्या करते थे, उनकी तपस्या से भयभीत हो इंद्र ने उन्हें रोकने के लिए एक योद्धा का रूप लेकर ऋषि की कुटिया में प्रवेश कर एक तलवार को उस ऋषि के पास छोड़ दिया, पहले तो ऋषि ने अपनी रक्षा के प्रयोजन उस तलवार को अपने पास रख लिया लेकिन शीघ्र ही वो उसे हर जगह लेकर जाने लगे और क्रोध के अधीन हो उनका तप क्षीण होता गया और ऋषि अधर्म की तरफ मुड़ गए।” कहानी का सार यही है कि आप नफरत में कब अपनी इंसानियत को खो दें आपको पता ही नहीं चलता।
रामायण के इस हिस्से को पढ़ते हुए एक खबर और सामने आई जहां सुप्रीम कोर्ट भारतीय समाचार चैनलों में परोसी जा रही नफरत की ओर अपनी चिंता व्यक्त करता है और भारत सरकार द्वारा इसको नियंत्रित करने के लिए एक नियमावली बनाने का आग्रह भी करता है। चाहे माँ सीता हों या उच्चतम न्यायालय दोनो की चिंता वाजिब है पर इस समय के भारत की समस्या ज्यादा गंभीर है क्योंकि इसमें आप राम की मर्यादा की कल्पना नही कर सकते।
इसी समय कांग्रेस पार्टी के प्रयास जिसका मूल मंत्र “नफरत छोड़ो , भारत जोड़ो” है। इससे एक सुखद एहसास की अनुभूति होती है| एक भारतीय होने के नाते इस प्रयास से अपने आपको जुड़ा हुआ पाना कतई स्वाभाविक है जिस तरह 2013 में भ्रष्टाचार की खबरों से ग्रसित भारत में, मैं बदलाव देखना चाहता था और अन्ना आंदोलन के साथ था परंतु उस आंदोलन के परिणाम स्वरूप जो राजनैतिक उत्पाद प्राप्त हुए वो उस सुनहरे सपने (Promised Land) के विपरीत ही लगते है। नफरत, बेरोजगारी और आर्थिक असमानता के विरोध में, शुरू हुई भारत जोड़ो यात्रा की सफलता सिर्फ किसी राजनीतिक दल तक सीमित न होकर सम्पूर्ण भारत की होगी।
सबसे पहले इस यात्रा के मार्ग पर प्रश्न उठे कि क्यों नही यह उन राज्यों से होकर गुजर रही जहां सत्तासीन दल का प्रभाव है? चूंकि आज देश में नफरत का एक मुख्य बिंदु धर्म है इसलिए लगता है धार्मिक दृष्टि से यह मार्ग सही है क्योंकि जब राम अहंकार और नफरत के रूप रावण के विरुद्ध युद्ध के लिए गए तो अपने लक्ष्य के लिए उन्होंने तमिलनाडु में ही शिव की आराधना की थी, भारत जोड़ो यात्रा भी तमिलनाडु से शुरू की गई उसके बाद केरल से गुजरी।
ऐसी धारणा है कि परशुराम ने केरल को बसाया जो स्वयं अहंकार और विनाश के प्रतीक सहस्त्रार्जुन के वध के लिए जाने जाते है साथ ही केरल में सबरीमाला का मंदिर अय्यप्पा और वावर/वावरास्वामी (अयप्पास्वामी के मुस्लिम दोस्त) के कारण हिंदू एवं मुस्लिम समुदाय दोनो के लिए पूजनीय है, ऐसे और भी उदाहरण दिए जा सकते है| इसीलिए केरल एक कारगर जगह है जहां आप धार्मिक सद्भाव की बात रख सकते है।
दूसरा एक आक्षेप जो भारत जोड़ो यात्रा पर लगा कि यह राहुल गांधी की राजनीति को पुन: स्थापित करने का प्रयास है जो सफल नही होगा; जिसके लिए कई उदाहरण प्रस्तुत किए गए कि कैसे उनके नेतृत्व में कांग्रेस ने अधिकांश चुनाव हारे। वैसे भी हम एक ऐसी दुनिया में रहते है जहां हम सिर्फ सफलता को सेलिब्रेट करते है और हमारी कहानियों में हम नायक को जीतता हुआ ही देखना चाहते है। लेकिन इसी देश में कई ऐसे उदाहरण है जो हार के बाद ऐतिहासिक हो गए जैसे केशवानंद भारती का केस जिसमे केशवानंद भले ही हार गए हों लेकिन भारत का संविधान जीत गया और भविष्य में उसके जीतने की अपार संभावना भी उत्पन्न हुई। इसी केस में एक न्यायधीश श्री एच. आर. खन्ना जो शायद मुख्य न्यायधीश की दौड़ में हार गए हो पर उनका इतिहास ऐसे कई मुख्य न्यायधीशों पर भारी है।
बाबा साहब भीमराव अंबेडकर का हमेशा से मानना रहा है कि राजनैतिक सुधारों से पहले सामाजिक सुधारों की आवश्यकता है, भले ही अंबेडकर 1952 का चुनाव ना जीत पाएं हो लेकिन अपने सामाजिक सुधारों के कारण ही उनका स्थान भारतीय इतिहास में अमिट है जो आने वाले समय में भी रहेगा। कुछ एक क्षण इस यात्रा की सफलता के संकेत देते हैं, उदाहरणस्वरूप संबित पात्रा द्वारा एक छोटी सी बच्ची पर टिप्पणी, तमिलनाडु में बीजेपी के आईटी हेड द्वारा राहुल गांधी के लड़कियों के साथ चित्रों पर उनकी अभद्र टिप्पणी और स्मृति ईरानी द्वारा झूठ का प्रसार जो सत्तासीन दल की बौखलाहट दर्शाता है परंतु इसके फलस्वरूप जो बड़ा हासिल है वो अभी तक हाशिये पर रहे मुद्दों का सत्तासीन दल या उसके आनुषंगिक संगठनों से जुड़े लोगों द्वारा उसे स्वीकार करना।
दत्तात्रेय होसबले द्वारा महंगाई और आर्थिक असमानता व मोहन भागवत का अल्पसंख्यक समुदाय के साथ खड़े होना और संघ के कार्यक्रम में पहली बार किसी महिला की उपस्थिति यह बताता है कि दबाव पड़ रहा है।
इसीलिए इस यात्रा को मैं केवल राजनैतिक दृष्टि से देखना उचित नही समझता। लेकिन यह प्रयास इतना आसान भी नही जैसा अंबेडकर, बौद्ध धर्म के बारे में कहते थे कि सबसे पहले आपको सीखा हुआ भूलना होगा तब आप बौद्ध को सीख पाएंगे। उसी तरह पहले इस यात्रा के माध्यम से, उस नफरत को लोगों के दिल से हटाना फिर सद्भाव की नई सीख देना यह जरूरी प्रयास होगा। इसके परिणाम क्या होंगे, क्या इस यात्रा के पूर्व से पश्चिम जाने का आधार, आने वाले चुनावों में कांग्रेस के चुनावी नतीजों पर आधारित होगा? लेकिन 2 अक्टूबर को एक वीडियो देखकर आशा यही है कि यह अपने विचारों के साथ आगे भी बढ़ेगी और गांधी के मूल्यों को प्रसारित करती रहेगी, इस वीडियो के अंत की टैगलाइन कुछ ऐसी है-
“गांधी जी की राह पर बेरोजगारी, महंगाई और नफरत के खिलाफ
भारत जोड़ो यात्रा, कन्याकुमारी से कश्मीर तक, हर जवाब मिलने तक, भारत जुड़ने तक”
जो एक भारतीय होने के नाते हमें आशा देती है कि नफरत के इस माहौल में ऐसे प्रयास होते रहेंगे क्योंकि लोग चाहे महात्मा को खत्म करने का प्रयास करते रहें उनके विचार हमेशा इस देश और दुनिया को राह दिखाते रहेंगे।