“बहरों को सुनाने के लिए धमाके की जरूरत होती है” फ्रेंच क्रांति के ऑगस्ट वेलिएंट द्वारा कहे इस वाक्य से प्रेरित होकर भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने 8 अप्रैल 1929 को असेंबली में बम फेंककर इसी वाक्य को दोहराया जिसका शोर
पिछले दिनों भारतीय राजनीतिक परिदृश्य में देश की विपक्षी दल कांग्रेस के नेता राहुल गांधी ने चुनावी राजनीति के इतर वैचारिक द्वंद का जिक्र किया, उसी वक्त कर्तव्य पथ पर नेताजी सुभाष चंद्र बोस की विशालकाय प्रतिमा का अनावरण किया गया। और
भारत जोड़ो यात्रा के माध्यम से, उस नफरत को लोगों के दिल से हटाना फिर सद्भाव की नई सीख देना यह जरूरी प्रयास होगा। इसके परिणाम क्या होंगे, क्या इस यात्रा के पूर्व से पश्चिम जाने का आधार, आने वाले चुनावों में
जो दिल्ली को जानते है वो वहाँ की गर्मी और सर्दी से भली भाँति परिचित होंगे। 17 दिसंबर 2012 की कंपकंपाती ठंड में दिल्ली उबल रही थी क्योंकि समाज बिना किसी चेहरे या संगठन के सहयोग के संगठित हो क्रोध से उबल
अंबेडकर के पास पूरा मौका था कि वो सरकार के मुखिया नेहरू की कटु आलोचना संसद पटल पर कर सकें लेकिन शायद संसदीय गरिमा या नेहरू का योगदान संविधान सभा में अंबेडकर के जेहन में रहा होगा जहां वह शालीनता से नेहरू
जब भी किसी धर्म संसद का उल्लेख होगा तो सहसा स्वामी विवेकानंद का 11 सितंबर 1893 का “विश्व धर्म संसद ” में हिंदू धर्म पर दिया हुआ भाषण जेहन में आएगा और आज लगभग 129 सालों बाद भी वह क्षण हर भारतीय