जिन युवाओं का हिंसक प्रदर्शन देखकर आप हिल से गए हैं यही युवा 21 से 25 साल की उम्र में बेरोजगार बनकर जब बाहर आएंगे और अपने आप को रेगुलर करने के लिए आंदोलन रत होंगे तो क्या मंजर होगा इसकी कल्पना कीजिए।
साल था 1997। आज की तरह टीवी चैनलों की भरमार नहीं थी। दूरदर्शन के कार्यक्रम सप्ताहिकी में पूरे हफ्ते में प्रसारित होने वाले कार्यक्रमों की रूपरेखा रखी जाती थी। किसी एक प्रसंग में हालिया रिलीज़ फ़िल्म बॉर्डर की चर्चा सुनी। शायद ये पहली फ़िल्म थी जिसे मैंने सिनेमा हॉल में देखा था। उस समय कहानी पटकथा और एक्टिंग की कुछ खास समझ तो नहीं थी लेकिन इस फ़िल्म ने इंडियन आर्मी और युद्ध की पृष्ठभूमि के बारे में कई चीजें साफ कर दी।
इस फ़िल्म ने एक सैनिक के फ़र्ज़ और पारिवारिक जिम्मेदारी की कशमकश की ऐसी प्रस्तुति की है जो अपने आप में बेजोड़ है। एक अंधी माँ का अपने पति को खोने के बाद अपने बेटे को युद्ध में जाते हुए महसूस करने का दृश्य हो या फिर शादी की पहली रात एक पत्नी का अपने पति को माँ भारती की सेवा में समर्पित करने का दृश्य हो आप भावुक हुए बिना नहीं रह पाएंगे। बीच युद्ध में मथुरादास का यूँ जंग का मैदान छोड़कर चले जाना आपको भी मेजर कुलदीप सिंह की तरह ही आक्रोशित करता है। देश के लिए सर्वोच्च बलिदान देने में भारतीय सेना का कोई जवाब नहीं। एक ऐसा समूह जो अनेकता में एकता का अप्रतिम उदाहरण है और जिसके भरोसे 135 करोड़ से अधिक की आबादी अपने घरों में सुकून की नींद सोती है।
जिस इंडियन आर्मी के ऊपर देश की सीमाओं की रक्षा का उत्तदायित्व है वो इस समय काफी चर्चा में है और चर्चा की वजह है भारत सरकार की एक योजना जिसके तहत अब सेना के जवान 4 साल के लिए संविदा पर चुने जाएंगे। अग्निपथ नाम की इस स्कीम के तहत चुने जाने वाले युवाओं को सैनिक की जगह अग्निवीर कहा जाएगा। भारत सरकार की इस घोषणा की युवाओं में तीव्र प्रतिक्रिया हुई है खासकर हिंदी पट्टी में।
बिहार यूपी और देश के अन्य हिस्सों से ट्रेनों के जलाने के साथ साथ भाजपा नेताओं के घर और दफ्तर को भी निशाना बनाया जा रहा है जो बेहद ही शर्मनाक है। सरकार की किसी योजना से आप सहमत असहमत हो सकते हैं लेकिन विरोध का ये तरीका कत्तई ठीक नहीं। हिंसा का रास्ता अपनाकर आप अपना पक्ष कमजोर कर रहे हैं और आप उस वर्ग का भी समर्थन खो रहे हैं जो इस योजना का समर्थक नहीं है।
अग्निवीर है क्या? 4 साल के लिए संविदा पर आप सेना की नौकरी करेंगे और उनमें से योग्य 25 फ़ीसदी तक को परमानेंट किया जाएगा तो क्या 75 फीसदी अयोग्य लोगों को आप आर्मी की ट्रेनिंग देंगे? इसका कोई जवाब नहीं। ऐसा कहा जा रहा है कि 4 साल बाद निकलने वाले बच्चों को अर्द्ध सैनिक बल और असम राइफ़ल्स में वरीयता दी जाएगी ये अच्छी पहल है लेकिन क्या इतनी नियमित नियुक्तियां हो रही है इन विभागों में जो हर साल करीब 30 से 35 हज़ार युवाओं को अपने में समाहित कर सके? अमेरिका, इंग्लैंड इजरायल जैसे देशों में ये स्कीम पहले से चल रही है एक दलील ये भी है जो कि अपनी जगह सही है।
हमें ये ध्यान में रखना होगा कि भारत की सामाजिक, भौगोलिक और खासकर आर्थिक स्थिति इन देशों की तुलना में बिल्कुल अलग है। भारत जहाँ जनसंख्या विस्फोट की कगार पर है वहीं इन देशों की लेबर जरूरतों को पूरा करने के लिए बाहर से लोगों को लाना पड़ता है। हमने अभी तक सिर्फ नियत की बात की है लेकिन 4 साल बाद निकलने वाले युवाओं को रोजगार देने का खाका क्या होगा इसकी कहीं कोई चर्चा नहीं। जिन देशों का उदाहरण दिया जा रहा है वहाँ उनका अपना फ्रेमवर्क है जिसके तहत युवाओं को एक सामाजिक सुरक्षा दी जाती है, क्या भारत की स्थिति भी यही है? ये तुलना ही अपने आप में हास्यास्पद है।
सोच कर निर्णय लेने और निर्णय लेकर सोचने में उतना ही फर्क है जितना एक समझदार और बेवकूफ में। वर्तमान सरकार के किसी भी फ़ैसले का विश्लेषण करें तो पता चलेगा कि अमृत काल के दौर में अंतिम पायदान पर खड़े व्यक्ति को विषवमन ही करना पड़ा है। सरकार की हर योजना जिसके लिए बनाई गई उसे छोड़कर बाकी सबको समझ आ गई।
नोटबन्दी अर्थशास्त्रियों को, जीएसटी व्यापारियों को, सीएए/एनआरसी अल्पसंख्यक समुदाय को और कृषी कानून को किसानों के अलावा सब समझ गए। एक तबका ऐसा है जिनका इन सबसे कुछ भी लेना देना नहीं है लेकिन उन्हें ये सारे कानून झट से समझ आ जाते हैं। सेना में भर्ती होने की नई योजना अग्निपथ का भी कुछ यही हाल है। जिसे अग्निवीर बनना है उन्हें छोड़कर ये कानून लगभग सबको समझ आ गया है। अपनी फेसबुक या व्हाट्सएप ग्रूप अगर आप एक्सप्लोर करें तो आप भी मेरी बात की तस्दीक करेंगे।
अग्निपथ की अग्निपरीक्षा दिए बिना अग्निवीरों द्वारा जो अग्निवर्षा की जा रही है उसकी भर्त्सना वो लोग भी कर रहे जो चंद दिनों पहले तक हिंसा और बुलडोज़र राज़ के कसीदे पढ़ते नहीं थकते थे। याद रखिए अगर हिंसा प्रतिहिंसा की आपकी परिभाषा व्यक्ति देखकर बदलती है तो आपमें और हिंसक भीड़ में कोई फर्क नहीं। हिंसा हर तरह से निंदनीय है लेकिन बात इस पर भी होनी चाहिए की हिंसा की नौबत ही क्यों आयी। अग्निपथ स्कीम की तह में जाएं तो पता चलेगा कि युवाओं में ये उबाल अकस्मात नहीं है।
जितनी मेरी समझ है और जितना मैं समझ पाया उसके अनुसार 3 अलग अलग तरह के समूह है जो अग्निपथ का विरोध कर रहे हैं। पहला समूह वो है जिसने फीजिकल और मेडिकल क्लियर कर लिया है और रिटेन का पिछले 2 सालों से इंतजार कर रहा है। जिस समय कोरोना की दलील देकर इनका रिटेन बार बार टाला गया ठीक उसी समय देश के अन्य भागों में फिजिकल और मेडिकल बाकायदा जारी रहे। क्या कोरोना सिर्फ लिखित परीक्षार्थीओ से ही फैलता? दूसरा समूह वो है जिसने एयरफोर्स का एग्जाम दिया लेकिन कोरोना के नाम पर पिछले 2 साल से उनका रिजल्ट बार बार टाला जा रहा। क्या कंप्यूटर द्वारा रिजल्ट जारी करने से भी कोरोना फैलने का खतरा है? तीसरा समूह वो है जिसका मेरिट लिस्ट में नाम आ चुका है लेकिन किसी न किसी बहाने बार बार उनकी जॉइनिंग टाली जा रही। इस अग्निपथ योजना के बाद इन युवाओं का क्या होगा ये कहीं भी स्पष्ट नहीं? क्या आपको नहीं लगता कि सरकार को ये चीजें स्पष्ट करनी चाहिए?
हिंसा किसी भी समस्या का हल नहीं लेकिन क्या ये सच नहीं कि पिछले 2 साल से ये बच्चे रक्षामंत्री से लेकर हर उस विभाग का चक्कर काट रहे हैं जहाँ से इन्हें अपने प्रश्नों का उत्तर मिलने की उम्मीद है। ट्वीटर केम्पेन से लेकर कई समूहों में धरना प्रदर्शन भी हुआ तब क्या आपने इनकी सुध ली? गाँव और छोटे छोटे कस्बों से आने वाले इन युवाओं के पास इतना संसाधन नहीं कि ये कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकें।
सपने देखने का हक तो इन्हें भी है। इन्हें भी अपने कच्चे घर पक्के कराने हैं। इन्हें भी अपनी बहन की शादी करनी है अपना भविष्य बनाना है। आपने कब आखिरी बार इनकी समस्याओं को लेकर बात की थी? जो खामोश हैं उनकी चीखों को सुनने की कोशिश कीजिए। ये विस्फोट अकस्मात नहीं है। इसकी जिम्मेदार सरकार है और सरकार के साथ हम और आप भी।
एक दलील ये भी दी जा रही है कि सेना में बज़ट का एक बड़ा हिस्सा सैलरी और पेंशन में चला जा रहा है और इसमें कटौती जरूरी है। सैलरी और पेंशन में कटौती की जगह आप रक्षा बज़ट बढ़ाने पर बात क्यों नहीं करते? जिस चीन से आने वाले समय में आपको मुकाबला करना है उसका रक्षा बज़ट आपसे तीन गुना ज्यादा है। युवाओं को नसीहत दी जा रही कि देशभक्ति को पैसे पर मत तौलो यही नसीहत सरकार को क्यों नहीं?
अग्निपथ का पूरा खाका ही पैसे पर आधारित है।4 साल का ही टर्म क्यों 5 साल का क्यों नहीं? 1 साल में एक 21-22 साल का लड़का बूढ़ा तो हो नहीं जाएगा? ऐसा इसलिए है क्योंकि श्रम कानूनों के अनुसार 5 साल पूरा करने के बाद आप ग्रेच्यूटी के हकदार हो जाएंगे जो ये सरकार देना नहीं चाहती। हर कुर्बानी की उम्मीद गाँव और कस्बों से आने वाले युवाओं से ही क्यों नीति निर्धारकों से क्यों नहीं?
सेना के इतिहास को देखें तो 15 साल बाद रिटायर होने वाले अधिकतर लोग किसी बैंक में, किसी अन्य संस्थान में या फिर किसी मल्टीनेशनल कंपनी में सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी करते मिल जाएंगे। इनके पास अपनी पेंशन और गार्ड की सैलरी मिलाकर इतना हो जाता है कि वो अपने परिवार का भरण पोषण कर सके। 4 साल बाद रिटायर होने वाले अग्निवीरों के पास पेंसन भी नहीं होगी। जिन युवाओं का हिंसक प्रदर्शन देखकर आप हिल से गए हैं यही युवा 21 से 25 साल की उम्र में बेरोजगार बनकर जब बाहर आएंगे और अपने आप को रेगुलर करने के लिए आंदोलन रत होंगे तो क्या मंजर होगा इसकी कल्पना कीजिए। तब उनके पास आर्मी की ट्रेनिंग, लड़ने की कला और हथियार चलाने का अनुभव भी होगा। सवाल कीजिये सरकार से। याद रखिए जिंदा कौमें सवाल करती हैं।
(यह लेखक के निजी विचार हैं।)