“यज्ञ का अर्थ ऐसे कार्य से है जिसका उद्देश्य दूसरों का कल्याण है। ऐसे कार्य के बदले किसी लाभ की इच्छा भी नहीं होनी चाहिए, चाहे वो इच्छा लौकिक हो या आध्यात्मिक।
‘कार्य’ के अर्थ को वृहद् परिप्रेक्ष्य में लेने की आवश्यकता है जिसमें विचार और शब्दों के साथ साथ कार्य भी शामिल है। ‘दूसरों’ शब्द सिर्फ़ मानवता को नहीं समेटता बल्कि इसमें जीवन के सभी रूप शामिल हैं। इसलिए वो ‘यज्ञ’ नहीं है जिसमें जानवरों की बलि दी जाती हो, फिर चाहे ऐसी बलि का उद्देश्य मानवता की सेवा ही करना क्यों ना हो।इससे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता कि वेदों में तथाकथित रूप से जानवरों की बलि को स्थान प्राप्त है।”
“इससे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता कि वेदों में तथाकथित रूप से जानवरों की बलि को स्थान प्राप्त है”: महात्मा गाँधी
बार बार इस्तेमाल होने वाले शब्द 'यज्ञ' का वास्तविक अर्थ क्या है?
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