“लोग मेरे स्वागत-सत्कार में बहुत सा धन खर्च कर देते हैं उससे स्वागत में कोई वृद्धि नहीं होती”: इंदिरा गाँधी

“ऐसा लगता है की हमें जरूरत से ज्यादा सम्मेलन आयोजित करने की आदत है। कुछ सम्मेलनों से बहुत अधिक लाभ मिलता है। लेकिन बड़ी संख्या ऐसे सम्मेलनों की है जो पिछली बातें ही दुहराते हैं और खर्चीले होते हैं।

मेरा एक काम यह भी है कि मैं देश के विभिन्न भागों की यात्रा करूँ और यद्यपि मैंने ऐसा न करने को कहा है, फिर भी मैंने देखा है कि राज्य सरकारें और स्थानीय लोग मेरे स्वागत-सत्कार में बहुत सा धन खर्च कर देते हैं। उससे स्वागत में कोई वृद्धि नहीं होती क्योंकि मेरी समझ से सबसे बढ़िया स्वागत यह है कि बच्चों के चेहरे खुशी से खिले  हुए मिलें और बड़ों के ओठों पर मुस्कराहट खेल रही हो। किसी तरह के स्वागत द्वार बनाने तथा उनके लिए सड़कों में खुदाई करने का कोई लाभ नहीं है क्योंकि उससे किसी स्थान की सुंदरता नहीं बढ़ती बल्कि फिर से उसे सही हालत में लाने के लिए बहुत सा काम करना पड़ता है।”