राजनीति : फेसबुकीकरण/यूट्युबीकरण,ट्वीटीकरण

जब तंत्र कमजोर होने लगेगा नागरिक दायित्व के द्वारा इस तंत्र को और जोर से पकड़ना होगा और इसे पुनः सम्मानजनक स्थिति में लाना होगा।

आखिर वो “हम भारत के लोग” ही तो हैं जिनसे संविधान अपनी प्रस्तावना में सर्वाधिक आशा करता है न की पार्टी, राजनेताओं और मंत्रियों से.नागरिक दायित्व कहते हैं कि राजनीति के अपराधीकरण के दौर के बाद अब इस संवेदनशील दौर में, फेसबुकीकरण और यूट्युबीकरण न हो पाए, क्या नागरिको को अब भी कोई संचार क्रांति चाहिए,जो उनके ज्ञान की,सतर्कता की, और अधिक बढ़ोत्तरी में सहायक हो सकेगी?



राजनीति और ‘नागरिक संस्कार’

राजनीति कोई बुरी व्यवस्था नहीं है, न ही प्रत्येक राजनेता चोर है, बल्कि मैं तो ये कहना चाहूंगी की राजनीति एक ऐसी व्यवस्था है जिससे बुराई और चोरी को नियंत्रित किया जा सकता है। एक अच्छी राजनीति किसी राष्ट्र की वह “सांस्कृतिक पूँजी” है जो किसी राष्ट्र के बेहतर वर्तमान तथा बेहतर भविष्य को सुनिश्चित करती है। सांस्कृतिक पूँजी इसलिए कह रही हूँ क्योंकि एक अच्छी राजनीति स्वस्थ “नागरिक संस्कारों” तथा अनवरत बेहतर नेतृत्त्व के निर्माण में सहायक होती है।

हमारे देश में यदि आज बेहतर नेतृत्व नहीं है तो इसका तात्पर्य यह है कि नागरिकों में “स्वस्थ नागरिक संस्कारों” की कमी है। और इस बात का तात्पर्य ये है कि लोग कम राष्ट्रवादी है (यह राष्ट्रवाद भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन से प्रभावित राष्ट्रवाद है,ना कि किसी खास पार्टी द्वारा परिभाषित संकुचित राष्ट्रवाद)। देशवासियों को पता करना होगा कि राष्ट्रीय आन्दोलन से प्रभावित राष्ट्रवाद और किसी पार्टी द्वारा प्रभावित राष्ट्रवाद में जमीन आसमान का अंतर है।

राजनेताओं के पास संविधान द्वारा प्रदत्त शक्तियां हैं, कानून की शक्तियां हैं साथ ही प्रशासन की भी कुछ शक्तियां राजनेताओं के पास होती हैं। इन शक्तियों का इस्तेमाल जिम्मेदार राजनीतिज्ञ और जिम्मेदार पार्टियां राष्ट्र की उन्नति के लिए करती हैं। परन्तु ऐसा देखने में नहीं मिल पाता कि राजनेता संविधान प्रदत्त शक्तियों का संवैधानिक तरीके से इस्तेमाल करते हों।

कौन है जिम्मेदार नेता?

राजनेता बनने के लिए जिन लोगों का प्रवेश राजनीति में हो रहा है,उनसे चमत्कार की आशा इसलिए नहीं की जा सकती क्योंकि प्रमाण बताते हैं,जिनके जीतने की सम्भावना पार्टियों को अधिक लगती है जैसे कोई नर्तक/नर्तकी (अश्लील,शालीन ) है,या कोई अभिनेता/अभिनेत्री,गायक/गायिका (अश्लील,शालीन),खिलाड़ी,धार्मिक गुरु,इन क्षेत्रो के लोग,एक जिम्मेदार प्रतिनिधि बनकर नहीं उभर पाते। मेरी याद में ऐसा कोई व्यक्ति नहीं है,जो नाच कर,गा कर,अभिनय करके,अपराध करके,अश्लीलता परोस कर,या मैदान में छक्के-चौके मारकर जनता का बेहतरीन प्रतिनिधित्व कर सका है,ऐसे लोग राजनीति में प्रवेश करने के बाद अपनी प्रोफेशनल लाइफ को (अपराध,अश्लीलता,नाच,गाना,खेल,अभिनय) और मजबूत करते ही पाए गए हैं, या राजनीति में आने के बाद एक संवैधानिक सुरक्षा को ही महसूस करते पाए गए हैं। वो जनता के प्रतिनिधि या जिम्मेदार राजनेता नहीं बन सके।

 


पर क्या सभी राजनेता जिम्मेदार राजनेता हैं ? क्या सभी अपनी शक्तियों और ओहदों का इस्तेमाल जनहित के लिए सोच विचार करके करते हैं? क्या नागरिक होने के नाते ये देशवासी कभी जान पाते हैं कि पर्दे के पीछे का क्या खेल है ? क्या आपको कभी महसूस नहीं हुआ कि चुनाव, जिन पर नेताओं का भविष्य टिका रहता है, हार जाने पर भी उनके चेहरों पर शिकन क्यों नहीं आती? क्यों उनका जीवन आम नागरिकों की तरह कभी/ज्यादातर बदतर नहीं होता? उनके सरकार में न रहने के बावजूद उनके आवागमन के खर्चे कौन उठाता है ? चुनावी हार के बावजूद नेताओं की विलासिता में कोई फर्क क्यों नहीं आता ?


इन प्रश्नों का उत्तर हाल में कारवां पत्रिका द्वारा किये गए एक खुलासे में मिल सकता है। इस खुलासे के तहत कारवां पत्रिका का कहना है कि उनके पास आयकर विभाग में जमा एक डायरी की कॉपी है। यह डायरी भाजपा के वरिष्ठ नेता और कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री बी। एस। येदुरप्पा की अपनी पर्सनल डायरी है,जिसमें उनके ही हांथों से उनकी ही लिखावट में 1800 करोड़ रुपये का लेनदेन दर्ज है।

कारवां के मुताबिक यह डायरी वर्ष 2009 की है जिसमें भाजपा केंद्रीय समिति को 1000 करोड़ रुपये देने का जिक्र है। इसमें वर्तमान वित्त मंत्री अरुण जेटली तथा सड़क एवं परिवहन मंत्री नितिन गडकरी प्रत्येक को 150 करोड़ रुपये, केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह को 100 करोड़ रुपये तथा लालकृष्ण आडवानी व मुरली मनोहर जोशी दोनों को 50 – 50 करोड़ रुपये देने का जिक्र है। इसके अतिरिक्त इस डायरी में नितिन गडकरी के बेटे की शादी में 10 करोड़ रुपये देने का भी जिक्र है। इसके अतिरिक्त वकीलों तथा जजों को भी करोड़ो रुपये देने का जिक्र है यद्यपि वकीलों और जजों के नाम डायरी में नहीं लिखे गए हैं।

यह डायरी भारत सरकार के अंतर्गत कार्य करने वाले आयकर विभाग के पास वर्ष 2017 से सुरक्षित है;जिसकी एक कॉपी कारवां पत्रिका को प्राप्त हो गयी और ये जानकारी आज पब्लिक डोमेन में है।

यद्यपि यह खुलासा एक पार्टी विशेष से सम्बंधित है परन्तु हमें इस खुलासे को खुले मष्तिष्क से एक वृहद् परिप्रेक्ष्य में देखे जाने की जरुरत है। कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और ऐसी ही कई राष्ट्रीय और क्षेत्रीय पार्टियां होंगी जिनमे घालमेल की सम्भावना है परन्तु कोई ठोस तथ्य सामने नहीं है।

 

हो सकता है भविष्य में कुछ और खुलासे हों और तब हम यह समझ पायें कि हमारे देश, प्रदेश का नेतृत्व करने वाले लोग जो इतने साफ़ सफ़ेद और भव्य प्रतीत होते हैं, जो हमेशा जनहित की बात करते हैं,हर पल बड़े बड़े वादे करते हैं असल में उनकी असलियत क्या है?

 

जब भी ऐसे खुलासे होंगे, वोटर के रूप में नागरिक होने के दायित्व और भी संवेदनशील और सशक्त हो जायेंगे। जब तंत्र कमजोर होने लगेगा नागरिक दायित्व के द्वारा इस तंत्र को और जोर से पकड़ना होगा और इसे पुनः सम्मानजनक स्थिति में लाना होगा। आखिर वो “हम भारत के लोग” ही तो हैं जिनसे संविधान अपनी प्रस्तावना में सर्वाधिक आशा करता है न की पार्टी, राजनेताओं और मंत्रियों से।

नागरिक दायित्व कहते हैं कि राजनीति के अपराधीकरण के दौर के बाद अब इस संवेदनशील दौर में,फेसबुकीकरण और यूट्युबीकरण न हो पाए,क्या नागरिको को अब भी कोई संचार क्रांति चाहिए,जो उनके ज्ञान की,सतर्कता की, और अधिक बढ़ोत्तरी में सहायक हो सकेगी? देश की एक पीढ़ी ने राजनीति का अपराधीकरण किया,तो क्या अगली पीढ़ी (वर्तमान) राजनीति में फरेब और झूठ से भरे ग्लैमर को बढ़ावा देने वाली है?
सावधान नागरिक;आप फेसबुक,यूट्यूब और ट्विटर के जमाने में हैं।

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