पैगंबरों और अवतारों ने हमें अहिंसा का पाठ पढ़ाया है, एक भी पैगंबर ने हिंसा की शिक्षा देने का दावा नहीं किया।

पैगम्बरों और अवतारों ने भी थोड़ा-बहुत अहिंसा का ही पाठ पढ़ाया है। उनमें से एक ने भी हिंसा की शिक्षा देने का दावा नहीं किया। और करे भी कैसे ? हिंसा सिखानी नहीं पड़ती। पशु के नाते मनुष्य हिंसक है और आत्मा के रूप में अहिंसक है। जब मनुष्य को आत्मा का भान हो जाता है, तब वह हिंसक रह ही नहीं सकता। या तो वह अहिंसा की ओर बढ़ता है या अपने विनाश की ओर दौड़ता है। यही कारण है कि पैगम्बरों और अवतारों ने सत्य, मेलजोल, भाईचारा और न्याय आदि के पाठ पढ़ाये हैं। ये सब अहिंसा के  गुण हैं।

यदि हमारा यह विश्वास हो कि मानव-जाति ने अहिंसा की दिशामें बराबर प्रगति की है, तो यह निष्कर्ष निकलता है कि उसे उस तरफ और भी ज्यादा बढ़ना है। इस संसार में स्थिर कुछ भी नहीं है, सब कुछ गतिशील है। यदि आगे बढ़ना नहीं होगा, तो अनिवार्य रूप में पीछे हटना होगा।

हरिजन, 11/08/1940