‘व्यवस्थित और सीमित’ तकलीफ़ें किसी भी सम्बंध की बुनियाद हैं। ‘रेग्युलेटेड’ समस्याओं का जाल दो व्यक्तियों के रिश्ते को कई जगह से मजबूत करता है। एक तरफ़ यह रिश्तों के ऊपर एक ऐसी छत बनाता है जिससे सम्बन्धों में ‘वाह्य आक्रमण’ की सम्भावनाएँ नगण्य हो जाती हैं तो दूसरी तरफ बनते रिश्तों में यह समस्याएँ, एक साझा नींव तैयार कर देती हैं जिसकी देखभाल रिश्ते के जीवन को लगातार बढ़ाती रहती है।
बिन समस्याओं के रिश्ते चीनी-मिट्टी के खूबसूरत कप के कमजोर हैंडल/कुंडे के समान होते हैं जो एक सामान्य झटके से कप अर्थात् रिश्ते की ख़ूबसूरती को ख़त्म कर सकता है। बिन तकलीफ़ों के रिश्ते ‘फ़्रेजाइल’ होते हैं कब और किस बात से टूट जाएँ कोई कह नहीं सकता उन्हें टूटने का बस एक बहाना चाहिए होता है।