गवर्नर को राज्य की पार्टीबाजी से अलग रहकर सार्वजनिक हित के लिए काम करना चाहिए: महात्मा गाँधी

गवर्नरों(राज्यपालों) के औचित्य पर गाँधी जी का नजरिया!

मेरे ख़याल से तो प्रान्तों में अब गवर्नरों की ज़रूरत ही नहीं है। मुख्यमंत्री ही सब कामकाज चला सकता है। जनता का 5500 रु. मासिक गवर्नर के वेतन पर व्यर्थ ही क्‍यों खर्च किया जाये? फिर भी अगर प्रान्तों में गवर्नर रखने ही हैं, तो वे उसी प्रान्त के नहीं होने चाहिए। बालिग मत से उन्हें चुनने में भी बेकार का खर्च और परेशानी होगी। यही अच्छा होगा कि संघ का राष्ट्रपति हर प्रान्त में दूसरे किसी प्रान्त का ऐसा प्रतिष्ठित… सज्जन भेजे, जो उस प्रान्त की पार्टीबाजी से अलग रहकर वहाँ के सार्वजनिक और राजनीतिक जीवन को ऊँचा उठा सके। 

 

-हरिजन सेवक, 21/12/1947