वॉलमार्ट के उच्च पदस्थ अधिकारी को मिल रही भारी-भरकम तनख्वाह के बीच कंपनी द्वारा हजारों कर्मचारियों की छंटनी ने दुनिया भर में असमानता और वेतन अंतर की बहस को फिर हवा दे दी है।
वॉलमार्ट के चीफ टेक्नोलॉजी ऑफिसर (CTO) सुरेश कुमार इन दिनों विवादों के केंद्र में हैं। इसकी वजह है उनकी सालाना 15 मिलियन डॉलर (लगभग ₹125 करोड़) की भारी-भरकम सैलरी, जबकि कंपनी ने हाल ही में अपने वैश्विक टेक डिवीजन में 1,500 नौकरियां खत्म करने का ऐलान किया है।
बेंगलुरु में जन्मे और अब कैलिफोर्निया में रहने वाले सुरेश कुमार को यह जिम्मेदारी 2019 में सौंपी गई थी। तकनीकी दुनिया में उनकी सफलता को अब तक भारतीय मूल के पेशेवरों की उपलब्धियों में गिना जाता रहा है, लेकिन इस हफ्ते, वह एक नई बहस का चेहरा बन गए हैं — क्या इतना वेतन उचित है जब हजारों कर्मचारियों की रोज़ी-रोटी छिनी जा रही हो?
सुरेश कुमार: एक शानदार करियर यात्रा
सुरेश कुमार का करियर उल्लेखनीय रहा है। IIT मद्रास और प्रिंसटन यूनिवर्सिटी से पढ़ाई करने के बाद उन्होंने गूगल, अमेज़न और माइक्रोसॉफ्ट जैसी दिग्गज कंपनियों में उच्च पदों पर काम किया। 2019 में वॉलमार्ट ने उन्हें CTO और Chief Development Officer के रूप में नियुक्त किया।
उनकी देखरेख में वॉलमार्ट ने अपने डिजिटल इन्फ्रास्ट्रक्चर को पूरी तरह से नया रूप दिया, जिससे कंपनी ने अमेज़न जैसी कंपनियों के मुकाबले में खुद को मजबूती से खड़ा किया।
SEC (U.S. Securities and Exchange Commission) में दर्ज रिपोर्ट के मुताबिक, सुरेश कुमार को 2023 में कुल $15 मिलियन का पैकेज मिला, जिसमें बेस सैलरी, बोनस और स्टॉक ऑप्शन्स शामिल थे।
छंटनी और कंपनी का पक्ष
20 मई 2025 को वॉलमार्ट ने 1,500 कर्मचारियों की छंटनी की घोषणा की, जो टेक्सास, कैलिफोर्निया और बेंगलुरु स्थित उसके टेक सेंटरों को प्रभावित करेगी। कंपनी ने इसे “भविष्य की रणनीति” बताया है, जिसके तहत संचालन को सरल और तेज़ बनाया जाएगा।
वॉलमार्ट के अनुसार:
“हम अपनी टीमों और प्रक्रियाओं को इस तरह विकसित कर रहे हैं कि वे हमारे ग्राहकों और सहयोगियों की डिजिटल दुनिया में बेहतर सेवा कर सकें।”
हालांकि, आलोचक इसे कर्मचारियों की छंटनी के लिए सिर्फ एक सुंदर शब्दों में लिपटी रणनीति मान रहे हैं — खासकर तब, जब शीर्ष अधिकारियों की मोटी तनख्वाह जारी है।
अन्य कंपनियों के वेतन से तुलना
सुरेश कुमार की सैलरी, हालांकि ऊँची है, लेकिन बड़े टेक या रिटेल कंपनियों के सी-सूट अधिकारियों के मुकाबले तुलनात्मक रूप से सामान्य मानी जा सकती है।
उदाहरण के लिए:
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सुंदर पिचाई (CEO, गूगल) — $226 मिलियन (2022)
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सत्य नडेला (CEO, माइक्रोसॉफ्ट) — $54.9 मिलियन
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डग मैकमिलन (CEO, वॉलमार्ट) — $25.3 मिलियन
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एंडी जेसी (CEO, अमेज़न) — $1.3 मिलियन वेतन + $200 मिलियन स्टॉक (2021)
वॉलमार्ट में 2023 में औसत कर्मचारी का वेतन था केवल $27,136 यानी लगभग ₹22 लाख सालाना। इसका मतलब है कि सुरेश कुमार की सैलरी एक औसत कर्मचारी से 553 गुना अधिक है — जो गहरी वेतन असमानता को दर्शाता है।
वैश्विक असमानता और भारत का परिप्रेक्ष्य
यह विवाद केवल वॉलमार्ट तक सीमित नहीं है। यह वैश्विक पूंजीवाद और कॉर्पोरेट दुनिया में बढ़ती असमानता की ओर इशारा करता है।
अमेरिका में, 1978 से अब तक CEO की सैलरी में 1,460% की वृद्धि हुई है, जबकि सामान्य कर्मचारियों की कमाई में सिर्फ 18% की बढ़ोतरी हुई है।
भारत में World Inequality Report 2022 के मुताबिक:
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शीर्ष 1% लोगों के पास देश की 40% से अधिक संपत्ति है।
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निचले 50% के पास केवल 3% संपत्ति है।
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भारत के कॉर्पोरेट क्षेत्र में CEO का वेतन अक्सर एक सामान्य कर्मचारी से 300-600 गुना होता है।
JNU की अर्थशास्त्री देविका नायर कहती हैं:
“अब हम मेरिट की बात नहीं कर रहे। ये एक कॉर्पोरेट अभिजात वर्ग का निर्माण है, जो आम आदमी से पूरी तरह कट चुका है।”
सोशल मीडिया पर लोगों की प्रतिक्रिया
X (पूर्व में ट्विटर), लिंक्डइन और रेडिट जैसे प्लेटफॉर्म्स पर सुरेश कुमार और छंटनी को लेकर तीखी बहस चल रही है।
एक यूजर ने लिखा:
“$15 मिलियन कमाना और हजारों की नौकरी लेना — ये तो कॉर्पोरेट नैतिकता का पतन है।”
दूसरे ने लिखा:
“सफलता के लिए बधाई, लेकिन क्या अब समय नहीं आ गया कि लीडरशिप सैलरी के फॉर्मूले को फिर से देखें?”
कुछ लोग सुरेश कुमार के समर्थन में भी सामने आए, और कहा कि उन्होंने कंपनी को टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया है। साथ ही यह भी कहा गया कि छंटनी का निर्णय अकेले उनका नहीं होता।
क्या आगे की राह में बदलाव संभव है?
इस घटनाक्रम ने एक बार फिर कई अहम सवालों को जन्म दिया है, जैसे कि –
क्या कंपनियों को उच्च वेतन और छंटनी दोनों साथ में जारी रखने की छूट होनी चाहिए?
क्या CEO और कर्मचारी वेतन में कोई तय अनुपात होना चाहिए?
क्या बढ़ती असमानता में भी पूंजीवादी मॉडल टिक पाएगा?
सुरेश कुमार और वॉलमार्ट के लिए इन सवालों का जवाब आसान नहीं होगा। लेकिन एक बात साफ है — इस बहस का अंत जल्द नहीं होने वाला।