पत्रकार मुकेश चंद्राकर की हत्या छत्तीसगढ़ सरकार पर एक कलंक!

भारत में पत्रकारों के सामने बढ़ते खतरों की एक और कड़ी में, छत्तीसगढ़ के पत्रकार मुकेश चंद्राकर 2 जनवरी 2025 को संदिग्ध परिस्थितियों में मृत पाए गए। चंद्राकर, जो स्थानीय भ्रष्टाचार और प्रशासनिक मुद्दों पर अपनी निडर रिपोर्टिंग के लिए जाने जाते थे, अपने घर में फांसी पर लटके पाए गए। हालांकि अधिकारियों ने इसे प्रारंभिक रूप से आत्महत्या बताया है, लेकिन उनके परिवार और सहकर्मियों ने इस पर संदेह जताया है और इसे उनकी जांच-पड़ताल से जोड़कर देखा है।

चंद्राकर की मौत ने पत्रकारिता समुदाय में हलचल मचा दी है और उन खतरों की ओर ध्यान आकर्षित किया है जिनका सामना खासकर उन पत्रकारों को करना पड़ता है जो संवेदनशील मुद्दों जैसे कि भ्रष्टाचार, भूमि विवाद और मानवाधिकारों पर रिपोर्टिंग करते हैं।

भारत में पत्रकारों पर हमले का काला इतिहास

भारत में पत्रकारों पर हमले और हत्या की घटनाएं एक चिंताजनक प्रवृत्ति बन चुकी हैं। कमिटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स (CPJ) के अनुसार, 1992 से अब तक भारत में कम से कम 56 पत्रकार मारे गए हैं, जिनमें से कई की हत्या उनके काम के चलते हुई। इन मामलों में अधिकतर अपराधी कभी सजा नहीं पाते।

प्रमुख घटनाएं

  1. गौरी लंकेश (2017): बेंगलुरु में अपने घर के बाहर गोली मारकर हत्या। लंकेश दक्षिणपंथी उग्रवाद की आलोचना के लिए जानी जाती थीं और उन्हें हत्या से पहले कई बार धमकियां मिली थीं।
  2. शुभम मणि त्रिपाठी (2020): उत्तर प्रदेश में अवैध बालू खनन पर रिपोर्टिंग करने वाले पत्रकार को गोली मार दी गई। उनकी जांच-पड़ताल से कई शक्तिशाली माफियाओं का पर्दाफाश हुआ था।
  3. रमन कश्यप (2021): उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी में किसान आंदोलन को कवर करते समय उनकी हत्या कर दी गई। यह घटना संघर्ष क्षेत्रों में रिपोर्टिंग करने वाले पत्रकारों के जोखिम को उजागर करती है।

ये घटनाएं भारत में पत्रकारों के खिलाफ बढ़ती शत्रुता को दर्शाती हैं, खासकर उन लोगों के खिलाफ जो राजनीतिक रूप से संवेदनशील मुद्दों पर काम कर रहे हैं।

पत्रकारों के सामने चुनौतियां और खतरे

भारत में पत्रकारों को अक्सर धमकी, उत्पीड़न और शारीरिक हिंसा का सामना करना पड़ता है। ये धमकियां केवल अपराधियों से ही नहीं बल्कि राजनीतिक समूहों, कानून प्रवर्तन एजेंसियों और कॉर्पोरेट संस्थाओं से भी आती हैं। कई मामलों में, ये धमकियां हिंसा या हत्या में बदल जाती हैं, जैसा कि मुकेश चंद्राकर के मामले में देखा गया।

महत्वपूर्ण रिपोर्ट्स

  • वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स (2023): रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स (RSF) द्वारा प्रकाशित इस रिपोर्ट में भारत 180 देशों में से 161वें स्थान पर है, जो पिछले वर्षों से और नीचे गिरा है। रिपोर्ट में पत्रकारों के खिलाफ हिंसा, सरकारी सेंसरशिप और मीडिया स्वामित्व के बढ़ते एकाधिकार को मुख्य कारण बताया गया है।
  • यूनेस्को रिपोर्ट (2022): ग्लोबल ट्रेंड्स इन फ्रीडम ऑफ एक्सप्रेशन रिपोर्ट ने भारत को पत्रकारों के लिए सबसे खतरनाक देशों में से एक बताया, खासकर उन लोगों के लिए जो भ्रष्टाचार और पर्यावरणीय मुद्दों पर काम करते हैं।
  • CPJ का इम्प्युनिटी इंडेक्स (2022): इस सूची में भारत उन देशों में शामिल है जहां पत्रकारों की हत्या के अपराधी बिना सजा पाए बच जाते हैं। न्याय की कमी एक बड़ी समस्या है, जहां जांच अक्सर ठप हो जाती है या प्रभावशाली लोगों द्वारा प्रभावित होती है।

छत्तीसगढ़: एक संवेदनशील क्षेत्र

छत्तीसगढ़, जहां मुकेश चंद्राकर काम करते थे, भारत के सबसे चुनौतीपूर्ण क्षेत्रों में से एक है। यह राज्य विशेष रूप से नक्सली उग्रवाद या प्रशासनिक भ्रष्टाचार की रिपोर्टिंग करने वाले पत्रकारों के लिए खतरनाक है। यहां कई पत्रकारों को देशद्रोह के आरोपों में गिरफ्तार किया गया है या उन्हें गंभीर धमकियां दी गई हैं।

वैश्विक संदर्भ और तुलनाएं

भारतीय पत्रकारों की स्थिति वैश्विक चिंताओं को प्रतिबिंबित करती है। इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ जर्नलिस्ट्स (IFJ) के अनुसार, 2023 में दुनिया भर में 60 से अधिक पत्रकार मारे गए। मेक्सिको, अफगानिस्तान और फिलीपींस जैसे देश पत्रकारों के लिए सबसे खतरनाक हैं। हालांकि, भारत में हिंसा और अपराधियों के खिलाफ कार्रवाई की कमी इसे एक अनोखी चुनौती बनाती है।

कार्रवाई की मांग

मुकेश चंद्राकर की मौत ने पत्रकारों के लिए मजबूत सुरक्षा उपायों की मांग को फिर से जीवंत किया है। RSF और प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया जैसी संस्थाओं ने उनकी मौत की स्वतंत्र जांच की मांग की है। पत्रकारों और कार्यकर्ताओं ने सोशल मीडिया पर #JusticeForMukesh जैसे हैशटैग का उपयोग करके इस मामले पर ध्यान आकर्षित किया है।

सुझावित कदम:

  1. मजबूत कानूनी सुरक्षा: पत्रकारों की सुरक्षा के लिए विशेष कानून बनाना और उन्हें सख्ती से लागू करना।
  2. स्वतंत्र जांच: पत्रकारों पर हुए हमलों की निष्पक्ष जांच सुनिश्चित करना ताकि अपराधियों को सजा दी जा सके।
  3. सुरक्षा प्रशिक्षण: संघर्ष क्षेत्रों या शत्रुतापूर्ण वातावरण में काम करने वाले पत्रकारों के लिए सुरक्षा प्रशिक्षण प्रदान करना।
  4. व्हिसलब्लोअर सुरक्षा: उन पत्रकारों को कानूनी संरक्षण देना जो भ्रष्टाचार और अन्य अन्यायों का खुलासा करते हैं।

मुकेश चंद्राकर की दुखद मौत इस बात को उजागर करती है कि भारत में पत्रकारों को किस प्रकार की कमजोरियों का सामना करना पड़ता है। लोकतंत्र के चौथे स्तंभ के रूप में, एक स्वतंत्र और निष्पक्ष प्रेस शक्ति को जवाबदेह बनाने और पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक है। पत्रकारों की सुरक्षा के बिना, एक सशक्त और स्वतंत्र भारत का सपना अधूरा रहेगा।