मुझे इस बात का अत्यन्त दुःख है कि हिन्दू धर्म की ओट में कितने ही अन्धविश्वास चल रहे हैं: महात्मा गाँधी

......इन सबके होते हुए भी मैं हिन्दू बना हुआ हूँ, क्योंकि मैं यह नहीं मानता कि ये अंधविश्वास हिन्दू धर्म के अभिन्‍न अंग हैं।

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मैं आपसे यह बात छिपाना नहीं चाहता कि हिन्दू धर्म के नाम पर जो अनेक अंधविश्वास समाज में प्रचलित हैं, उनसे मैं अनजान नहीं हूं। मैं उन सबको जानता हूं और मुझे इस बात का अत्यन्त दुःख है कि हिन्दू धर्म की ओट में कितने ही अन्धविश्वास चल रहे हैं। मुझे यह कटु सत्य कहने में कोई संकोच नहीं है। मुझे अछूतपन को इन अन्ध-विश्वासों में सबसे बड़ा बताने में कभी संकोच नहीं हुआ है। परन्तु इन सबके होते हुए भी मैं हिन्दू बना हुआ हूँ, क्योंकि मैं यह नहीं मानता कि ये अंधविश्वास हिन्दू धर्म के अभिन्‍न अंग हैं। हिन्दू धर्म में शास्त्र-वचनों के अर्थ लगाने के जो नियम बताये गये हैं, वे ही नियम मुझे यह सिखाते हैं कि जिस सत्य का मैंने आपके सामने प्रतिपादन किया है और जो इस मंत्र –

ईशावास्यमिदं सर्वं यत्किंच जगत्यां जगत्‌।
तेन त्यक्तेन भुंजीथा: मा गृध: कस्यस्विद्‌ धनम्‌ ॥

(इस जगतमें बड़ा या छोटा जो कुछ भी है, उसमें – सूक्ष्मसे सूक्ष्म परमाणुमें भी- ईश्वर व्याप्त है। वह सर्जक है, राजा है। ईश का अर्थ है राज्य करनेवाला। जो सर्जक है वह अपने सर्जक होने के अधिकार से ही स्वभावत: राजा, शासक बन जाता है।)

में निहित है, उससे जो भी वस्तु असंगत हो उसे यह समझकर तुरन्त अस्वीकार कर देना चाहिये कि इसका हिन्दू धर्मके साथ कोई सम्बन्ध नहीं हो सकता।

 

हरिजन, 30/01/1937; पृ 410