“जजों से उपदेश की आशा नहीं की जा सकती”, कलकत्ता हाईकोर्ट के एक फैसले पर सुप्रीम कोर्ट

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  • भारत के सुप्रीम कोर्ट ने कलकत्ता हाईकोर्ट द्वारा एक मामले में की गई टिप्पणियों पर गहरी आपत्ति दर्ज की है।
  • मामला एक किशोरी से जुड़ा हुआ था।
  • कलकत्ता हाईकोर्ट इस किशोरी के यौन उत्पीड़न के मामले को सुन रहा था।
  • हाईकोर्ट ने मुख्यरूप से किशोर लड़कियों को “अपनी यौन इच्छाओं के प्रति आगाह” रहने की सलाह दे डाली।
  • हाईकोर्ट ने कहा कि उन्हे समाज की नजर में एक ‘लूजर’ बनने से बचना चाहिए विशेषरूप से तब “जब वह मुश्किल से दो मिनट के यौन सुख का आनंद लेने के लिए तैयार हो जाती है”।  
  • सुप्रीम कोर्ट ने कलकत्ता उच्च न्यायालय की इस टिप्पणी पर स्वतः संज्ञान लेते हुए इस पर गहरी आपत्ति व्यक्त की।
  • जस्टिस अभय ओका और पंकज मित्तल ने संविधान के अनुच्छेद 32 के अंतर्गत स्वतः संज्ञान सुनवाई में कहा कि कलकत्ता उच्च न्यायालय की उपर्युक्त टिप्पणी ‘आपत्तिजनक’ व अनुच्छेद-21 के तहत किशोरों की निजता का उल्लंघन है।
  • सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि “प्रथम दृष्टया हमारा मानना ​​है कि ऐसे मामले में माननीय न्यायाधीशों से अपने व्यक्तिगत विचार व्यक्त करने या उपदेश देने की अपेक्षा नहीं की जाती है।”