लता और ताज़महल एक ही हैं और एक ही रहेंगे

प्यार करना सीखिए; अपने वतन से, अपने परिवार से, अपने दोस्तों से, अपने काम से ...यही लता जी को सच्ची श्रद्धांजलि होगी

नब्बे के दशक का शुरुआती दौर था। तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने प्रधानमंत्री नरसिंह राव और वित्त मंत्री मनमोहन सिंह के नेतृत्व में भारतीय बाज़ार को दुनिया के दूसरे मुल्कों के लिए खोल दिया था। आज की तरह समाचार चैनलों की भरमार नहीं थी। रेडियो पर आने वाली न्यूज़ का भी एक नियत समय होता था। अखबार तो सिर्फ 10वीं या 12वीं के रिजल्ट वाले दिन ही देखने को मिलते थे। बड़े बुजुर्गों को चर्चा करते हुए सुना था कि काँग्रेस ने ठीक नहीं किया, देश फिर से विदेशी कंपनियों का ग़ुलाम हो जाएगा। उस समय ये सब बातें समझ नहीं आती थी या ये कहें कोई मतलब ही नहीं था इन बातों से। दादाजी के पास फ़िलिप्स की एक रेडियो हुआ करती थी जिस पर पूरे मोहल्ले को देश दुनिया की खबर देने की जिम्मेदारी थी। दोपहर के समाचार के बाद फरमाइसी गीतों का कार्यक्रम आता था।

किसी दर्शक नें ‘यशोमती मइया से बोले नंदलाला’ गाने की फरमाइश की थी। ये गाना लता मंगेशकर ने गाया है किसी ने कहा। ये पहला वाकया था जब मैंने ‘लता मंगेशकर’ नाम सुना था।

 

 

अजीब सा सम्मोहन था उस आवाज में। अब हर दिन यही इंतजार रहता था कि काश कोई दर्शक फिऱ से उस गाने की फरमाइश कर दे। दादा जी पूजा पाठ में काफी रुचि रखते थे। उनकी सुबह भजन कीर्तन से ही शुरू होती थी। जब घर में पहली बार टेप(एक तरह का म्यूज़िक प्लयेर) आया तो उसके साथ ढेर सारी कैसेट थी भजन की उसमें से एक कैसेट थी, लता मंगेशकर द्वारा गाए हुए भजनों की। एक से बढ़कर एक गाने। फिर क्या था लता जी के गाए हुए भजन, ग़ज़ल, फ़िल्मी गानें सुनने का जो सिलसिला शुरु हुआ वो आजतक बदस्तूर जारी है। लता जी की क्या तारीफ करूँ ये नाम ही अपने आप में एक तारीफ है। किसी सिंगर की इससे ज्यादा क्या तारीफ की जा सकती कि वो लता मंगेशकर है।

 

 

गंगा, गांधी और गीत के बिना हिंदुस्तान की कल्पना नहीं की जा सकती। गीत के आसरे समूचे हिंदुस्तान को एक सूत्र में पिरोने के लिए किसी को याद किया जाय तो नि:सन्देह वो लता जी ही होंगी।

 

7 दशक 14 भाषाएँ औऱ 50000 से अधिक गीत; अद्भुत है ये! लता जी की काबिलियत इन आंकड़ों से कहीं बढ़ कर थी। राखी हो या कीर्तन, लेडीज संगीत हो या विदाई की रस्म, लता जी के गानों के बिना अधूरी है। पान की दुकान से लेकर आपके ड्राइंग रूम तक लता हर जगह हैं।

 

वो न जाने कितनी खामोश लबों की आवाज बन कर उभरीं। लता जी ने महिलाओं को घर की दहलीज़ से बाहर निकाला। न जाने कितनों ने इस आवाज के साए में अपने ख्वाबों की दुनिया को जिया। इस आवाज ने न जाने कितनों को अपने एकांत का हमराज़ दिया।

 

 

अगर सफल लोगों के इतिहास को खंगाला जाए तो अधिकांशत: लोग 5-7 साल तक अपने कैरियर के पीक पर रहते हैं। 15-20 साल तक पीक पर रहने वाले को एक्स्ट्रा आर्डिनरी कहा जाता है।

 


लता जी ने 7 दशकों (लगभग 70 सालों) तक दिलों पर राज किया। वो ईद भी थी और दीवाली भी। ‘ओ पालनहारे’ हो या ‘अल्लाह करम करना’ हो, आवाज़ की खनक आपको अभिभूत कर देगी। वो लता जी ही हैं जिनकी वजह से गायकों को भी रॉयल्टी मिलनी शुरू हुई।


 

लता जी सुर, लय, ताल की ऐसी संगम थीं जिसमें डुबकी लगाकर मधुबाला, वहीदा रहमान से लेकर माधुरी दीक्षित, काजोल, प्रीती जिंटा और न जाने कितनों का फिल्मी सफ़र परवान चढ़ा। शायद ही कोई म्यूजिक डायरेक्टर हो जिसके साथ लता जी ने गाना न रिकॉर्ड किया हो।

 

 

शायद बहुत कम लोगों को पता होगा कि हिंदी पट्टी में शादी के समय दूल्हे का जूता चुराने वाली रस्म, फ़िल्म हम आपके हैं कौन की ‘पैसे दो जूते लो’ वाले गाने के बाद ही मुख्य रूप से प्रचलन में आई।

ये गाना लता जी ने ही गाया था। ऐसे तमाम क़िस्से भरे पड़े हैं जिनको कहने लगे तो वक़्त और जगह दोनों कम पड़ जाएगी। सिलसिला का ‘नीला आसमाँ’ हो या लिबास का ‘सिली हवा’ या फिर मैंने प्यार किया का ‘दिल दीवाना’, लता जी की आवाज पाकर अमर हो गए। वीरज़ारा का ‘तेरे लिए हम हैं जिए’ हो या रंग दे बसंती की ‘लुका छिपी’, एक एक शब्द अंदर तक झकझोर देता है। वो आवाज काल, गति और समय से परे थी।

 

 

करोड़ों की आवाम में, हज़ारों फनकारों के बीच लता जी ध्रुव तारा की तरह हमेशा चमकती रहेंगी। लता और ताज़महल एक ही हैं और एक ही रहेंगे। लता जी ने पूरी दुनिया को मोहब्बत का पैग़ाम दिया। कहते हैं संगीत की कोई सरहद नहीं होती। उनके चाहने वाले हिंदुस्तान और पाकिस्तान के अलावा दुनिया के हर मुल्क में भरे पड़े हैं।

 

 

लता जी आज हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उनके तराने हमेशा उन्हें लोगों की ज़ेहन में जिंदा रखेंगे। आज जहाँ लोग नफरत में अंधे हुए जा रहें हैं वहाँ लता जी की प्रासंगिकता और बढ़ जाती है। लता जी से प्रेरणा लीजिए। प्यार करना सीखिए; अपने वतन से, अपने परिवार से, अपने दोस्तों से, अपने काम से और सबसे ज्यादा अपने आप से।यही लता जी को सच्ची श्रद्धांजलि होगी। गाते रहिए गुनगुनाते रहिए। अंत में दो पंक्तिया उस तराने की जो मेरी पसंदीदा है।

जब हम न होंगे तो हमारी खाक पर तुम रुकोगे चलते चलते,
अश्कों से भीगी चांदनी में एक सदा सी सुनोगे चलते चलते।