जवाहरलाल नेहरू और अल्बर्ट आइंस्टीन के बीच कुछ दिलचस्प और ऐतिहासिक संबंध थे, जो उनकी समान विचारधारा, शांति के प्रति प्रतिबद्धता और विज्ञान के प्रति प्रेम को दर्शाते हैं। यहां उनके रिश्ते के कुछ महत्वपूर्ण और दिलचस्प पहलू हैं:
- शांतिवादी दृष्टिकोण: नेहरू और आइंस्टीन दोनों ही शांतिवादी थे और परमाणु हथियारों के खिलाफ थे। आइंस्टीन ने 1950 के दशक में परमाणु युद्ध के खतरे के खिलाफ नेहरू की गुटनिरपेक्ष नीति की सराहना की थी। नेहरू ने भी परमाणु हथियारों को मानवता के लिए सबसे बड़ा खतरा माना था और कहा था कि भारत का भविष्य शांतिपूर्ण तकनीकी विकास में निहित है। (स्रोत: मेकर ऑफ मॉडर्न इंडिया – रामचंद्र गुहा)
- 1950 के पत्राचार: आइंस्टीन और नेहरू ने पत्रों के माध्यम से भी संवाद किया था। 1950 में, आइंस्टीन ने नेहरू को पत्र लिखा था जिसमें उन्होंने उनसे कोरिया में शांति स्थापित करने और अमेरिका-सोवियत संघ के बीच मध्यस्थता करने की अपील की थी। नेहरू ने इस पत्र का सकारात्मक उत्तर दिया और संयुक्त राष्ट्र में शांति की स्थापना के प्रयासों का समर्थन किया। (स्रोत: द आइंस्टीन फाइल्स – फ्रेड जेरॉम)
- गुटनिरपेक्ष आंदोलन और समर्थन: जब नेहरू गुटनिरपेक्ष आंदोलन के प्रमुख नेताओं में से एक बने, तो आइंस्टीन ने उनके इस दृष्टिकोण का समर्थन किया। वे मानते थे कि गुटनिरपेक्षता का मार्ग ही एक स्थायी शांति की ओर ले जा सकता है, और उन्होंने इसे परमाणु हथियारों की दौड़ को सीमित करने के एक महत्वपूर्ण प्रयास के रूप में देखा। (स्रोत: द हिस्ट्री ऑफ द नॉन-अलाइन्ड मूवमेंट – पीएन हक्सर)
- पगवॉश कॉन्फ्रेंस में समानता: आइंस्टीन ने पगवॉश कॉन्फ्रेंस के आयोजन का सुझाव दिया था, जो परमाणु नीतियों और हथियारों के खतरे पर वैश्विक चर्चा का मंच था। नेहरू इस सम्मेलन के सिद्धांतों का समर्थन करते थे, हालांकि वे व्यक्तिगत रूप से इसमें शामिल नहीं हुए। पगवॉश सम्मेलन के उद्देश्यों के प्रति उनके समर्थन ने उनकी वैश्विक शांति की वकालत को मजबूत किया। (स्रोत: आइंस्टीन: हिज लाइफ एंड यूनिवर्स – वॉल्टर इसाकसन)
- वैज्ञानिक और दार्शनिक दृष्टिकोण: नेहरू और आइंस्टीन दोनों विज्ञान के प्रति अत्यधिक रुचि रखते थे। नेहरू ने भारत में विज्ञान और प्रौद्योगिकी को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और एक वैज्ञानिक सोच विकसित करने का प्रयास किया, जबकि आइंस्टीन का मानना था कि विज्ञान मानवता के लिए नैतिक जिम्मेदारी का स्रोत है। उनके दार्शनिक दृष्टिकोण समान थे और दोनों ही विज्ञान को मानवता की सेवा में लगाने के पक्षधर थे। (स्रोत: नेहरू: द इन्वेंशन ऑफ इंडिया – शशि थरूर)
- “आइंस्टीन-रसेल घोषणापत्र” पर प्रतिक्रिया: 1955 में, आइंस्टीन और फिलॉसॉफर बर्ट्रेंड रसेल ने परमाणु युद्ध के विरोध में एक घोषणापत्र जारी किया, जिसे “आइंस्टीन-रसेल घोषणापत्र” कहा जाता है। इस घोषणापत्र में परमाणु युद्ध से होने वाले खतरों का वर्णन किया गया था। नेहरू ने इस घोषणापत्र का समर्थन किया और इसे एक महत्वपूर्ण दस्तावेज माना जो परमाणु युद्ध के विरुद्ध जागरूकता फैलाने में सहायक था। (स्रोत: आइंस्टीन: हिस आइडियाज एंड ओपिनियंस – कार्ल सेलीग)
नेहरू और आइंस्टीन के बीच इन सभी दृष्टिकोणों और उद्देश्यों में समानता ने उन्हें वैश्विक स्तर पर शांति के समर्थक और मानवता के प्रति संवेदनशील व्यक्तित्व के रूप में जोड़ा।