अहिंसा ऐसी स्थूल चीज़ नहीं है जैसी बताई गई है। बेशक, किसी प्राणी को चोट न पहुँचाना अहिंसा का एक अंग है। परंतु वह तो उसका छोटे से छोटा चिह्न है। अहिंसा के सिद्धांत का भंग हर बुरे विचार से, अनुचित जल्दबाज़ी से, झूठ बोलने से, घृणा से और किसी का बुरा चाहने से भी होता है। दुनिया के लिए जो वस्तु ज़रूरी है, उस पर अधिकार जमाने से भी इस सिद्धांत का भंग होता है।
अहिंसा के बिना सत्य की खोज़ और प्राप्ति असंभव है। अहिंसा और सत्य आपस में इतने ओतप्रोत है कि उन्हें एक-दूसरे से अलग करना लगभग असंभव है। वे सिक्के या इससे भी बेहतर किसी चिकनी चकती के दो पहलुओं की तरह है। कौन कह सकता है कि उनमें कौन-सा पहलू उलटा और कौन-सा सीधा है? फिर भी अहिंसा साधन है; सत्य साध्य है। साधन तभी साधन हैं जब वे हमारी पहुँच के भीतर हों, और इसलिए अहिंसा हमारा सर्वोपरि कर्त्तव्य है। यदि हम साधनों की सावधानी रखें तो आगे-पीछे हमारी साध्य सिद्धि होकर रहेगी। जब एक बार हमने इस मुद्दे को अच्छी तरह समझ लिया, तो अंतिम विजय असंदिग्ध है।
मंगलः-प्रभात 1945; पृ 7-9