“मेरी राय में अहिंसा केवल व्यक्तिगत सद्गुण नहीं है। वह एक सामाजिक सद्गुण भी है,जिसका विकास अन्य सद्गुणों की भांति किया जाना चाहिए। अवश्य ही समाज का नियमन ज्यादातर आपस के व्यवहार में अहिंसा के प्रगट होने से होता है। मेरा अनुरोध इतना ही है कि उसका राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पैमाने पर अधिक विस्तार किया जाए।”