“पत्नी पति की दासी नहीं है, बल्कि उसकी जीवन संगिनी और सहायक है और उसके तमाम सुख-दुख में बराबर का हिस्सा बँटाने वाली है। वह स्वयं अपना मार्ग चुनने को उतनी ही स्वतंत्र है जितना उसका पति।
मैं बाल विवाह से घृणा करता हूँ। मैं बाल-विधवा को देखकर कांप उठता हूँ और जब किसी पति को विधुर बनते ही पाशविक उपेक्षा के साथ पुनर्विवाह करते देखते हूँ,तो क्रोध के मारे कांपने लगता हूँ। मुझे उन माता-पिताओं की अपराधपूर्ण उपेक्षा पर दुख होता है,जो अपनी लड़कियों को सर्वथा अज्ञान और निरक्षर रखते हैं और उनका पालन पोषण सिर्फ इस गरज से करते हैं कि किसी साधन-सम्पन्न युवक से उनका ब्याह कर दिया जाए।”
‘पत्नी पति की दासी नहीं है, बल्कि उसकी जीवन संगिनी और सहायक है’
जब किसी पति को विधुर बनते ही पाशविक उपेक्षा के साथ पुनर्विवाह करते देखते हूँ,तो क्रोध के मारे कांपने लगता हूँ
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