मैंने देखा है कि जहां पूर्वग्रह युगों पुराने और कल्पित घार्मिक प्रमाणों के आधार पर खड़े होते हैं, वहां केवल बुद्धि को अपील करने से काम नहीं चलता। बुद्धि को कष्ट सहन का बल अवश्य मिलना चाहिये और कष्ट-सहन से समझ की आंखें खुलती हैं। इसलिए हमारे कामों में जबर- दस्ती का लवलेश भी नहीं होना चाहिये। हमें अधीर नहीं बनना चाहिये; और हम जिन साधनों को अपना रहे हैं, उनमें हमारी अटल श्रद्धा होनी चाहिये।
यंग इंडिया, 19/03/1925