जब हम जानते हों कि अमुक रास्ता सही है, सच्चा है, तब निर्भय होकर उसपर कदम बढ़ा ही देना चाहिए: महात्मा गाँधी

अपनी इच्छाओं की जांच करें तो हम देखेंगे कि....जो चीज अपने पास नहीं होती उसकी कीमत हम सदा ज्यादा आंकते हैं।

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नीति-विषयक प्रचलित विचार वज़नदार नहीं कहे जा सकते। कुछ लोग तो मानते हैं कि हमें नीति की बहुत परवाह नहीं करनी है। कुछ मानते हैं कि धर्म और नीति में कोई लगाव नहीं है। पर दुनिया के धर्मों को बारीकी से देखा जाय तो पता चलेगा कि नीति के बिना धर्म टिक नहीं सकता। सच्ची नीति में धर्म का समावेश अधिकांश में हो जाता है। जो अपने स्वार्थ के लिए नहीं, बल्कि नीति के खातिर नीति के नियमों का पालन करता है, उसको धार्मिक कह सकते हैं। रूस में ऐसे आदमी हैं जो देश के भले के लिए अपना जीवन अर्पण कर देते हैं। ऐसे लोगों को नीतिमान समझना चाहिए। जेरेमी बेंथम को, जिसने इंग्लैंड के लिए बहुत अच्छे कानूनों के नियम ढूंढ निकाले, जिसने अंग्रेज जनता में शिक्षा प्रसार के लिए भारी प्रयास किया और जिसने कैदियों की दशा सुधारने के यत्न में जबर्दस्त हिस्सा लिया, नीतिमान्‌ मान सकते हैं।

 

 

फिर सच्ची नीति का यह नियम है कि हम जिस रास्ते को जानते हों उसको पकड़ लेना ही काफी नहीं है, बल्कि जिसके बारे में हम जानते हों कि वह सही रास्ता है-फिर उस रास्ते से हम वाकिफ हों या न हों-उसपर हमें चलना चाहिए। यानी जब हम जानते हों कि अमुक रास्ता सही है, सच्चा है, तब निर्भय होकर उसपर कदम बढ़ा ही देना चाहिए। इसी नीति का पालन किया जाय तभी हम आगे बढ़ सकते हैं। इसलिए नीति और सच्ची सभ्यता तथा सच्ची उन्‍नति सदा एक साथ देखने में आती हैं।

 

 

अपनी इच्छाओं की जांच करें तो हम देखेंगे कि जो चीज हमारे पास होती है उसको लेना नहीं होता। जो चीज अपने पास नहीं होती उसकी कीमत हम सदा ज्यादा आंकते हैं। पर इच्छा दो प्रकार की होती है। एक तो होती है अपना निज का स्वार्थ साधने की। ऐसी इच्छा को पूरा करने के प्रयत्न का नाम अनीति है। दूसरे प्रकार की इच्छाएं ऐसी होती हैं कि हमारा झुकाव सदा भला होने और दूसरों का भला करने की ओर होता है। हम कोई भला काम करें तो उस पर हमें गर्व से फ़ूल न जाना चाहिए। हमें उसका मूल्य नहीं आंकना है, बल्कि सदा अधिक भला होने और अधिक भलाई करने की इच्छा करते रहना चाहिए। ऐसी इच्छाओं के पूरा करने के लिए जो आचरण किया जाय, उसको सच्ची नीति कहते हैं।

 

 

‘नीति-धर्म’ पुस्तक से

(यह पुस्तक गाँधी जी द्वारा दक्षिण अफ्रीका में संघर्ष के दौरान लिखी थी)