भारत में अक्टूबर महीने के लिए थोक मूल्य सूचकांक (WPI) पर आधारित मुद्रास्फीति दर 2.4% तक पहुंच गई है, जो सितंबर में 1.9% थी। यह वृद्धि मुख्य रूप से खाद्य पदार्थों और ऊर्जा की कीमतों में वृद्धि के कारण हुई है। इस वृद्धि ने सरकारी और उपभोक्ता दोनों के लिए चिंता को बढ़ा दिया है, क्योंकि यह संकेत देती है कि आपूर्ति श्रृंखला की चुनौतियां और वैश्विक वस्तु कीमतों में उतार-चढ़ाव भारत की मुद्रास्फीति दर को प्रभावित कर रहे हैं।
खाद्य पदार्थों की कीमतों में वृद्धि
सरकारी आंकड़ों के अनुसार, अक्टूबर में थोक मूल्य सूचकांक में वृद्धि मुख्य रूप से खाद्य पदार्थों की कीमतों में तेज वृद्धि के कारण हुई है। खाद्य मुद्रास्फीति 5.3% तक पहुंच गई, जो सितंबर में 4.7% थी। इसमें ताजे फल, सब्जियां, दालें और गेहूं जैसी आवश्यक वस्तुओं की कीमतों में इजाफा देखा गया। इसके साथ ही, पशुचारे और दूध जैसी प्राथमिक खाद्य वस्तुओं की कीमतें भी बढ़ी हैं, जिससे उपभोक्ताओं के लिए दैनिक आवश्यकताओं की कीमतें बढ़ गई हैं।
विशेष रूप से ताजे फल और सब्जियों की कीमतों में तेजी ने बाजारों में खलबली मचा दी है। अधिकांश क्षेत्रों में मौसम की अनिश्चितता और आपूर्ति में रुकावट के कारण इन वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि हुई है। विशेषज्ञों का कहना है कि मौजूदा कृषि उत्पादन में गिरावट और परिवहन लागत में वृद्धि ने इस समस्या को और बढ़ा दिया है।
ऊर्जा कीमतों में वृद्धि
इसके अलावा, ऊर्जा और खनिजों की कीमतों में भी तेजी आई है। ऊर्जा सेक्टर में मुद्रास्फीति दर अक्टूबर में 3.2% रही, जबकि सितंबर में यह 2.6% थी। पेट्रोल, डीजल और प्राकृतिक गैस की कीमतों में वृद्धि का प्रभाव थोक मूल्य सूचकांक पर पड़ा है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में उतार-चढ़ाव और घरेलू आपूर्ति की समस्याओं के कारण ऊर्जा की कीमतों में लगातार वृद्धि हो रही है।
विशेषज्ञों का कहना है कि वैश्विक स्तर पर कच्चे तेल की कीमतों में बढ़ोतरी और वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं में अव्यवस्थाएं भारतीय बाजारों को प्रभावित कर रही हैं। इससे घरेलू उपभोक्ताओं पर दबाव बढ़ सकता है, खासकर जो पहले ही उच्च खाद्य और ऊर्जा कीमतों का सामना कर रहे हैं।
निर्यात और आपूर्ति श्रृंखला समस्याएं
भारत में थोक मूल्य मुद्रास्फीति में वृद्धि का एक और कारण है वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला समस्याएं और भारत से निर्यात की बढ़ी हुई मांग। इन समस्याओं के कारण कई वस्तुओं की उपलब्धता कम हो गई है, जिससे उनकी कीमतों में वृद्धि हुई है।
इसके अलावा, वैश्विक बाजारों में वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि का असर भारतीय थोक बाजार पर भी पड़ा है, जिससे मुद्रास्फीति दर में वृद्धि हुई है। भारतीय अर्थव्यवस्था पर इसका प्रभाव और बढ़ सकता है, क्योंकि उपभोक्ताओं की खर्चीली क्षमता पर यह सीधा असर डालता है।
हालांकि अक्टूबर में थोक मूल्य मुद्रास्फीति में वृद्धि हुई है, विशेषज्ञों का कहना है कि आने वाले महीनों में इसे नियंत्रित करने के लिए सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) विभिन्न कदम उठा सकते हैं। सरकार की ओर से कृषि उत्पादों की आपूर्ति बढ़ाने के लिए कदम उठाए जा रहे हैं, और आरबीआई ने भी मौद्रिक नीति में बदलाव के संकेत दिए हैं।
इसके अलावा, मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिए केंद्रीय बैंक को ब्याज दरों में वृद्धि करने की आवश्यकता हो सकती है, जिससे लागत बढ़ने पर खर्च पर नियंत्रण पाया जा सके। हालांकि, बढ़ती मुद्रास्फीति और महंगाई के बीच भारतीय उपभोक्ताओं को राहत मिलना अभी दूर की बात है, और सरकार और नीति-निर्माताओं के लिए यह एक बड़ी चुनौती बनी हुई है।
अक्टूबर 2023 में थोक मूल्य सूचकांक मुद्रास्फीति 2.4% तक पहुंचना उपभोक्ताओं और अर्थव्यवस्था के लिए एक चेतावनी है। खाद्य और ऊर्जा कीमतों में वृद्धि, वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला की समस्याएं और बढ़ती मांग ने मुद्रास्फीति को प्रभावित किया है। अब यह देखना होगा कि सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक मुद्रास्फीति पर काबू पाने के लिए किस तरह के कदम उठाते हैं, ताकि उपभोक्ताओं को राहत मिल सके और अर्थव्यवस्था की स्थिरता बनी रहे।