हे माधव आज कहाँ तुम हो?…./कविता

हे चक्र ढको रवि को खुद से/ चाहे बल हो या पूरा छल। कब तक ढक पायेंगे लज्जा/ अबला के दोनों करतल।।

चुनौती नागों को



                                                                                                         

सीमा पर पहरेदारी कर
रक्त बहाने वालों को।
फूल चढ़ाएँगे हम सब
ऐसे बीर जवानों को।।

गीत बंदे मातरम गा
वतन पे मरने वालों को।
थाल सजाकर पूजेंगे
ऐसे ही मस्तानो को।।

कलम उठी जब भी मेरी
मस्तानी शामें लिखने को।
कर दिया बिबस माँ का आंसू
अंगारे बरसाने को।।

शब्द सुधा लेकर निकला
सृष्टि की आग बुझाने को।
बिचलित स्वाभिमान बोला
जलती हाला पी जाने को।।

घृणित सियासत भारत की
देख – देख जी ऊब गया।
कसम राम की तन- मन से
रक्त हमारा खौल गया।।

भूल गया रस राग – रंग
कामिनी नयन सुखभूल गया।
मेरा रोम -रोम उच्छवासित हो
बंदे मातरम बोल गया।।

भय नहीं भयानक बादल से
भय नहीं किन्ही तूफानो से।
लेखनी सदा सच उगलेगी
डर तनिक नहीं भूचालों से।।

मंदिर में चहल – पहल दिखती
लेकिन सब सहमे डरे हुए।
दानव के भीषण गर्जन से
लगते हैं सब मरे हुए।।

दग्ध ज्वाल के जलने से
काँप उठी दुनियाँ, सारी।
जिहवाएं खोले नाग बढ़े
ब्यग्र हुई सृष्टी सारी।।

कोयल का नीड़ लगा जलने
मानवता भी घबराई सी।
अपमानित अबला-मान हनन से
शर्म रही शरमाई सी।।

कामार्त राक्षसों के डर से
मौत भी काँप उठी थर – थर।
पर आज साथ गांडीव नहीं
औ साथ नहीं वह गरल जहर।।

हे माधव आज कहाँ तुम हो?
पीताम्बर कहाँ वह चीर रही।
आँख समाय रही नभ में
नभ में पुतरी ये समात नहीं।।

हे चक्र ढको रवि को खुद से
चाहे बल हो या पूरा छल।
कब तक ढक पायेंगे लज्जा
अबला के दोनों करतल।।