‘क़हर’ की कविता
थालियाँ सड़कों पर..
बहुत देर से देर हो रही है,
सरकार उठी नहीं अभी सो रही है!
आंदोलन में जो भीड़ सड़कों पर है
उसमें किसान नहीं है,
वो असल में अनाज है जो दिल्ली के चारों ओर कई किलोमीटर तक फैला हुआ है।
वो गेहूं और चावल के दाने हैं जो खेत की जगह सड़कों पर पड़े हैं।
गर्मी में इन दानों के गर्म हो जाने का ख़तरा है;
ख़तरा है! थालियों के जल जाने का, आँतों के सूख जाने का।
उन्हें कैसे भी करके छाँव देनी होगी।
ठंडा करना होगा;
पर ठंड में तो डर है, ठंडा हो जाने का?
फफूँद लग जाने का, मुर्दा हो जाने का, रोग फैल जाने का।
नहीं! उन्हें जल्द उठाना होगा।
खेत में पहुँचाना होगा।
उनकी तमतमाहट मिट्टी की भाषा समझती है,
मिट्टी की गर्मी और ठंडक उन्हें जीवन देगी
और वो जीवन देंगे थालियों को कटोरियों को।
— राम लखन ‘क़हर’