‘भक्त’ पुनर्जन्म की प्रतीक्षा में हैं

वो वहीं सड़ेंगे वहीं रहेंगे, जर्जर हो जब गिरेंगे भी

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‘भक्त’


 

वो कुँए की घिरनी है,
अंधकार और गहराई के ऊपर लटके रहने को अभिशप्त,
प्रकाश और अंधकार के बीच रहकर भी,
अंधकार की ओर है उनका झुकाव। 

 

 

कुआँ चाहे ख़ाली हो या भरा,
रेत से पटा हो या सूखे पानी से भरा,
वो वहीं सड़ेंगे वहीं रहेंगे,
जर्जर हो जब गिरेंगे भी,
तो उसी अंधकार में। 

 

 

उनके झुकाव ने उनकी नियति तय की,
और उनकी नीति ने उनका अंत,
आधे अंधकार की भभक से,
जलकर राख वो अपने पुनर्जन्म की प्रतीक्षा में है।

 

 

 

– रामलखन ‘क़हर’