सिंहासन को याद नहीं,शीतल घनरस से नहलाना/ कविता

मत मान गिराना निज घर का, खूंखार बनाकर याराना

सीख प्रेमरस बरसाना
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ऐ कलम सिपाही देख ज़रा 
ऊपर मेघों का घहराना
बदल पैंतरा थोड़ा सा
अब सीख प्रेमरस बरसाना।। 1।।

इस पुण्यभूमि पर संकट की
काली छाया है डोल रही
इसके पुत्रों में त्राहि- त्राहि
नफरत की ज्वाल हिलोर रही।। 2।।

सिंहासन को याद नहीं
शीतल घनरस से नहलाना
बदल पैंतरा थोड़ा सा
अब सीख प्रेमरस बरसाना।। 3।।

अनगिनत खजाने लुटे यहाँ
सुख – चैन लुटे थे जन- जन के
लापरवाही बनमाली की
निष्प्राण हुए जड़ – चेतन के।। 4।।

कितनी कृष्णाओं की लाज लुटी
कितनी कलियों का बुझ जाना
बदल पैंतरा थोड़ा सा
अब सीख प्रेमरस बरसना।। 5।।

ऐ कलम सिपाही पूछ जरा
राम और घनश्याम कहां
कहां गया मेवाड़ केसरी
औ झांसी की शान कहाँ।। 6।।

स्वातंत्र्य दीवानों से पूछो
जो बना शमां का परवाना
बदल पैंतरा थोड़ा सा
अब सीख प्रेम रस बरसाना ।। 7।।

तू हिंद देश से पूछ जरा
यहां आग सुलगती है कैसी
चिंगारी नफरत की जलती
भारत में छिटक रही कैसी।। 8।।

शोला बन शांति फसल जलती
उग रहा यहां उर्वर दाना
बदल पैंतरा थोड़ा सा
अब सीख प्रेम रस बरसाना।। 9।।

पूर्व दिशा लखते- लखते
हो रही विखंडित भूमाता
उल्टी चाले देख देश में
निंदा रस भी शरमा जाता।। 10।।

श्रीहत् महिमा भी चीख उठी
इतनी रसना का बढ़ जाना
बदल पैंतरा थोड़ा सा
अब सीख प्रेम रस बरसाना।। 11।।

आहत फणि की मणि ले लेना
भूखी बाघिन से बच पाना
स्वातंत्र्य दीवाने कहते हैं
मुश्किल है जीवन बच पाना।। 12।।

मत मान गिराना निज घर का
खूंखार बनाकर याराना
बदल पैंतरा थोड़ा सा
अब सीख प्रेम रस बरसाना।। 13।।

नफरत का नंगा नाच देख
ज्वाला छाती को चीर रही
प्रसव पीर भारत मां की
सिर पर चढ़कर बोल रही।। 14।।

राज वाटिका लख अपनी
मत सिंहासन को ललचाना
बदल पैंतरा थोड़ा सा
अब सीख प्रेम रस बरसाना।। 15।।

इतिहास लिखेगा जब गाथा
तब खून के आंसू रोवोगे
अपने दिव्य शक्ति का परिचय
यदि न जग को दिखलाओगे।। 16।।

देश के टुकड़े जहां पाना
उन्हें हिंदुस्तान बना देना
बदल पैंतरा थोड़ा सा
अब सीख प्रेम रस बरसाना।। 17।।

जालसाज इस दुनियाँ में
दुनियादारी में मत जाना
झूठ को सच साबित करने की
हिकमतदारी को मत लाना।। 18।।

जिसमें हित केवल तेरा हो
वह समझ जेहन में ना लाना
बदल पैंतरा थोड़ा सा
अब सीख प्रेम रस बरसाना।। 19।।

इस कारण पिछड़ भले जाना
पर धूर्त विधा मत अपनाना
चाहे वफादार कोई ना समझे
पर गद्दारी मत दिखलाना।। 20।।

एक कलम सिपाही देख विजन में
“विमल” कुसुम का मुस्काना
बदल पैंतरा थोड़ा सा
अब सीख प्रेम रस बरसाना।। 21।।