मीडिया की नकारात्मक दिशा
वह कौन व्यथित हो रोता है
भावी इतिहास नियंत्रक से
जिसमे मानवता सिसक रही
कुटिल नीति अभियंत्रक से
मलिन हृदय के परिपोषक
माया मे पलने वाले
झूठी खबरों के संवाहक
दो कौड़ी मे बिकने वाले
आप नहीं लड़ता लेकिन
कटवा देता मासूमों को
कागज कलम का दंगा कर
उकसाता दानव बन जाने को
लोकतन्त्र की बिल्डिंग का
चौथा खंभा जो मीडिया है
बांकपना बह गया उसी का
लोभ की गहरी दरिया है
सदी इकीस सन आठ वर्ष के
आते ही बोल उठा अंबर
लव जिहाद औ गैंग रेप का
कांसेप्ट प्रचंड हुआ सत्वर
सोशल मीडिया का तिमिर फनी
पहनी मानो निज मणि माला
सदी इकीस सन सोलह तक
प्रतिदिन पढ़ लेते यह ज्वाला
इसकी वेवसाइट पर प्रतिदिन
यह खुराफात मिल ही जाती
बच्चों के कोमल मानस को
धीरे धीरे यह गरमाती
नकारात्मक चित्र खींचता
संप्रदायवाद का उद्दीपक
चाँदी जूते निज सिर पर रख
यह हिंसा का पागल पोषक
सांप्रदायिक हिंसा के नये नये
आंकड़े परसने वाला यह
धर्म जाति के पचड़े में
नरमुंड चढ़ाने वाला यह
भाई चारा विश्वास प्रेम
सब बंदी इसके चंगुल में
मानवता का इतिहास बिकल
पूरे ग्लोबल के संकुल में
अनुशासित शिक्षा के मंदिर
मे भी संस्कृति का लोप् हुआ
गुरु कौन है शिष्य कौन
विकृत मीडिया का कोप हुआ
म्रियमांण मनुजता को ब्याकुल
मीडिया ने अर्थी कर डाला
इसके घनचक्कर मे पड़कर
सुत ने जननी को हत डाला
साधु वेश धर मीडिया में
बहुत लुटेरे आये हैं
तप्त सलिल से सींच सींच
शुचि तरु सुखवाने आये है
नकारात्मक दिशा दिखा
मत पीढ़ी को बर्बाद करो
घूस कमाने वाले मीडिया
कुछ तो नेकी का काम करो
अपनी रूह के छालों को
मैं सोच रहा कुछ साफ करूँ
बुझते हुए चिरागों मे कुछ
तेल डाल आबाद करूँ
लेकिन इस मीडिया ने केवल
एक ही जिद्द पकड़ ली है
यह सुंदर दुनिया है जितनी
उतनी ही इसे खराब करूँ
लज्जित हैं मेरे सब प्रयास
कैसे परिवर्तन लाऊँ मैं
उपयोग मीडिया का करना
कैसे जग को समझाऊँ मैं