भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू देश की अवसंरचना की एक एक ईंट रख रहे थे। देश के विकास में योगदान का जज़्बा रखने वाले हर व्यक्ति को मौका देना चाहते थे। भले ही किसी का जज़्बा धरातल और वास्तविकता से मेल
ट्विटर पर स्वयं को ‘देसी मॉडर्न’ कहने वाले लेखक और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफ़ेसर श्री पुरुषोत्तम अग्रवाल पूर्व में संघ लोकसेवा आयोग के सदस्य भी रह चुके हैं। देश में वैज्ञानिक मिज़ाज को बढ़ावा देने के हिमायती प्रो. अग्रवाल वोल्फ़सान
अंबेडकर के पास पूरा मौका था कि वो सरकार के मुखिया नेहरू की कटु आलोचना संसद पटल पर कर सकें लेकिन शायद संसदीय गरिमा या नेहरू का योगदान संविधान सभा में अंबेडकर के जेहन में रहा होगा जहां वह शालीनता से नेहरू
मैं आपसे बिना किसी स्क्रिप्ट के बात कर रहा हूं क्योंकि …मेरे पास आजकल लिखने के लिए बहुत कम समय है, हालाँकि मेरा मन बहुत सी घटनाओं से भरा हुआ है।…….आज सुबह, हमारे नेता, हमारे गुरु, महात्मा गांधी, दिल्ली आए, और मैं
अस्पृश्यता हिंदू धर्म का अविभाज्य अंग नहीं है, बल्कि एक ऐसा अभिशाप है जिसके साथ युद्ध करना प्रत्येक हिंदू का पवित्र कर्त्तव्य है। इसलिए ऐसे सब हिंदूओं को, जो इसे पाप समझते हैं, इसके लिए प्रायश्चित करना चाहिए। इसके लिए उन्हें अछूतों
मैं व्यक्तिगत स्वतंत्रता की कीमत करता हूँ, परंतु आप को यह नहीं भूलना चाहिए कि मनुष्य मुख्यतः एक सामाजिक प्राणी है। अपने व्यक्तिवाद को सामाजिक प्रगति की आवश्यकताओं के अनुकूल बनाना सीखकर वह अपने मौजूदा ऊँचे दर्जे पर पहुँचा है। अनियंत्रित व्यक्तिवाद
असल में धन के नाम से जो चीज़ चाही जाती है वह है मनुष्यों पर सत्ता। सीधे-सादे शब्दों में उसका अर्थ है, वह सत्ता जिससे हमें अपने लाभ के लिए नौकर, व्यापारी और कलाकार का श्रम मिल जाए। इसलिए साधारण अर्थ में
आर्थिक समानता का सच्चा अर्थ है जगत के सब मनुष्यों के पास एक समान संपत्ति का होना, यानी सबके पास इतनी संपत्ति होना, जिससे वे अपनी कुदरती आवश्यकताएँ पूरी कर सकें। कुदरत ने एक आदमी का हाजमा अगर नाजुक बनाया हो और