यदि विश्व में जो कुछ है वह सब ईश्वर से व्याप्त है, अर्थात, ब्राह्मण और भंगी, पंडित और मेहतर, सबमें भगवान विद्यमान है, तो न कोई ऊंचा है और न कोई नीचा, सभी सर्वथा समान है; समान इसलिए क्योंकि सभी उसी
बेटी घर छोड़ बनी धारा किसी विचलित उर से यह, नव जलधारा आ जगी है। नदियाँ सागर पार कर, उद्भवित होने लगी हैं। इस करूणामयी धारा से, परिपूर्ण हुआ सागर। विशाल पर्वत बहे आ रहे , चली आ रही खादर।
सीख प्रेमरस बरसाना ================== ऐ कलम सिपाही देख ज़रा ऊपर मेघों का घहराना बदल पैंतरा थोड़ा सा अब सीख प्रेमरस बरसाना।। 1।। इस पुण्यभूमि पर संकट की काली छाया है डोल रही इसके पुत्रों में त्राहि- त्राहि नफरत की ज्वाल हिलोर
हम प्रशासनिक ग़ुलामी से तो आज़ाद हो गए थे लेकिन सामाजिक और व्यक्तिगत बेड़ियों से नहीं। सामंती मानसिकता, जातिवाद, अमीर-ग़रीब का फ़र्क़, धार्मिक उन्माद, जो सदियों से मज़बूती से टिके हुए थे, वह एक दशक में कैसे जा सकते थे? और साथ
जिन युवाओं का हिंसक प्रदर्शन देखकर आप हिल से गए हैं यही युवा 21 से 25 साल की उम्र में बेरोजगार बनकर जब बाहर आएंगे और अपने आप को रेगुलर करने के लिए आंदोलन रत होंगे तो क्या मंजर होगा इसकी कल्पना
राहुल गाँधी के कैंब्रिज में दिए गए बयान को राष्ट्रविरोधी साबित करने की होड़ मची हुई है। जबकि असलियत यह है कि केन्द्रीय एजेंसियों के बेजा इस्तेमाल और पेगासस के खतरे ने देश के संघीय ढांचे पर जो चोट मारी है वह
प्राचीन काल में गुरुकुल प्रणाली ने क़िताबी ज्ञान से ज़्यादा किसी काम को करके उस अनुभव से उसके बारे में सीखने पर ध्यान केंद्रित किया। वहां आज़ादी थी आपकी सोच, आपके हुनर को पहले तलाशने की और फ़िर उसे निखारने की। क्लास
जनसंख्या विस्फोट लोगों को आमदनी, स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा इत्यादि की पर्याप्त उपलब्धता ना होने के कारण इंसान मेहनत तो अधिक करता है जिस से उसकी आमदनी बढ़ती है लेकिन बढ़ी हुई आमदनी सीमित स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा, रोज़गार इत्यादि से मेल नहीं खा