क्यों पक्षपात है नारी से? मृदा दीप को जलवाकर जी करता है कुछ गाऊँ मैं जंग लगी अपनी संस्कृति को फिर से जामा पहनाऊँ मैं ।। १।। कब्र खोद कर अस्थि संजो मुर्दों में जान पिन्हाऊं मैं द्वापर के नायक पार्थ
अन्य विश्व की तरह भारत में भी वैक्सीन के लिए प्रयास जारी थे। संक्रमण के मामलों में कुछ महीनों के पश्चात गिरावट आई पर वह सरकार के प्रयासों से नहीं बल्कि हर्ड इम्युनिटी से था। सरकार का ध्यान हमेशा की तरह कुछ
मीडिया की नकारात्मक दिशा वह कौन व्यथित हो रोता है भावी इतिहास नियंत्रक से जिसमे मानवता सिसक रही कुटिल नीति अभियंत्रक से मलिन हृदय के परिपोषक माया मे पलने वाले झूठी खबरों के संवाहक दो कौड़ी मे बिकने वाले
अगर मैं यह कहूँ कि यह मीडिया जिसमें बैठा बुद्धिजीवी ‘निष्पक्षता’ के नशे से बाहर ही नहीं निकलना चाहता तो यह गलत नहीं होगा। मेरा मानना है कि अगर ‘निष्पक्षता’ लग्जरी बन गई है तो यह अपराध है…देश के सबसे तेज चलने
रेप और गैंगरेप को लेकर हमारी आधुनिक संवेदनशीलता दिसंबर 2012 को हुए निर्भया गैंगरेप मामले से जुड़ी हुई है। उसके बाद शक्तिमिल(मुंबई), कठुआ, उन्नाव, हाथरस जैसे तमाम कभी न खत्म होने वाली अंतहीन सूची महिलाओं के प्रति समाज की भावनाओं को उजागर
देश किसी की व्यक्तिगत संपत्ति नहीं था और बंटवारे की लाइन “रैडक्लिफ़ लाइन” पर समझौते पर कांग्रेस की ओर से नेहरू और अबुल कलाम आजाद, मुस्लिम लीग का प्रतिनिधित्व करने वाले जिन्ना, दलितों की ओर से अंबेडकर, और सिखों की ओर से
“ऐसा लगता है की हमें जरूरत से ज्यादा सम्मेलन आयोजित करने की आदत है। कुछ सम्मेलनों से बहुत अधिक लाभ मिलता है। लेकिन बड़ी संख्या ऐसे सम्मेलनों की है जो पिछली बातें ही दुहराते हैं और खर्चीले होते हैं। मेरा एक काम
रंगभेद में देश में काले रंग के लोगों के लिए “कल्लू”, “अफ्रीकन”, “नीग्रो” इत्यादि। ऐसे लोगों मज़ाक बनना, उन पर रंग गोरा करने पर ज़ोर, रंग गोरा करने के लिए सौन्दर्य-प्रसाधन की पूरी इंडस्ट्री और विज्ञापन और विवाह के लिए विज्ञापनों और