स्वतंत्र रहना या दास बनना आपके अपने हाथ में है: महात्मा गाँधी

  मनुष्य का सच्चा सुख सन्तोष में निहित है। जो मनुष्य असन्तुष्ट है वह कितनी ही सम्पत्ति होने पर भी अपनी इच्छाओं का दास बन जाता है। और इच्छाओं की दासता से बढ़कर दूसरी कोई दासता इस जगत में नहीं है। सारे

हमें ग्रामवासियों से एकता साधनी होगी: महात्मा गाँधी

जिनकी पीठ पर जलता हुआ सूरज अपनी किरणों के तीर बरसाता है और उस हालत में भी जो कठिन परिश्रम करते रहते हैं, उन ग्रामवासियों से हमें एकता साधनी है। हमें सोचना है कि जिस पोखर में वे नहाते हैं और अपने

‘जो सेवा करना चाहता है, वह अपने आराम का विचार करने में एक क्षण भी व्यर्थ खर्च नहीं करेगा’: महात्मा गाँधी

वैराग्य का यह अर्थ नहीं कि संसार को छोड़कर जंगल में रहने लग जाएँ। वैराग्य की भावना जीवन की समस्त प्रवृत्तियों में व्याप्त होनी चाहिए। कोई गृहस्थ यदि जीवन को भोग न समझकर कर्तव्य समझता है, तो वह गृहस्थ मिट नहीं जाता।

‘मैं बाल विवाह से घृणा करता हूँ’: महात्मा गाँधी

मैं बाल-विवाहों से घृणा करता हूँ। मैं बाल-विधवा को देखकर काँप उठता हूँ और जब किसी पति को विधुर बनते ही पाशविक उपेक्षा के साथ पुनर्विवाह करते देखता हूँ, तो क्रोध के मारे काँपने लगता हूँ। मुझे उन माता-पिताओं की अपराधपूर्ण उपेक्षा

‘अहिंसा और सत्य आपस में इतने ओतप्रोत है कि उन्हें एक-दूसरे से अलग करना लगभग असंभव है’: महात्मा गाँधी

अहिंसा ऐसी स्थूल चीज़ नहीं है जैसी बताई गई है। बेशक, किसी प्राणी को चोट न पहुँचाना अहिंसा का एक अंग है। परंतु वह तो उसका छोटे से छोटा चिह्न है। अहिंसा के सिद्धांत का भंग हर बुरे विचार से, अनुचित जल्दबाज़ी

जब हम जानते हों कि अमुक रास्ता सही है, सच्चा है, तब निर्भय होकर उसपर कदम बढ़ा ही देना चाहिए: महात्मा गाँधी

नीति-विषयक प्रचलित विचार वज़नदार नहीं कहे जा सकते। कुछ लोग तो मानते हैं कि हमें नीति की बहुत परवाह नहीं करनी है। कुछ मानते हैं कि धर्म और नीति में कोई लगाव नहीं है। पर दुनिया के धर्मों को बारीकी से देखा

मुझे इस बात का अत्यन्त दुःख है कि हिन्दू धर्म की ओट में कितने ही अन्धविश्वास चल रहे हैं: महात्मा गाँधी

मैं आपसे यह बात छिपाना नहीं चाहता कि हिन्दू धर्म के नाम पर जो अनेक अंधविश्वास समाज में प्रचलित हैं, उनसे मैं अनजान नहीं हूं। मैं उन सबको जानता हूं और मुझे इस बात का अत्यन्त दुःख है कि हिन्दू धर्म की

दुनिया के सभी धर्मों में सदाचार एक आवश्यक अंग माना गया है: महात्मा गाँधी

पश्चिम में लोगों की आम राय यह है कि मनुष्य का एकमात्र कर्त्तव्य अधिकांश मानव-जाति की सुखवृद्धि करना है, और सुख का अर्थ केवल शारीरिक सुख और आर्थिक उन्नति माना जाता है। यदि इस सुख की प्राप्ति में नैतिकता के कानून भंग

मैं देशप्रेमी हूँ, क्योंकि मैं मानव-प्रेमी हूं: महात्मा गाँधी

मेरे लिए देशप्रेम और मानव-प्रेम में कोई भेद नहीं है; दोनों एक ही हैं। मैं देशप्रेमी हूँ, क्योंकि मैं मानव-प्रेमी हूं। मेरा देशप्रेम वर्जनशील नहीं है। मैं भारत के हित की सेवा के लिए इंग्लैण्ड या जर्मनी का नुकसान नहीं करूँगा। जीवन

मैंने बहुत कम पुस्तकें पढ़ी हैं परंतु उन्हे अच्छे से हजम करने की पूरी कोशिश की है: महात्मा गाँधी

विद्यार्थी-जीवन में पाठ्यपुस्तकों के अलावा मेरा वाचन नहीं के बराबर समझना चाहिए। और कर्मभूमि में प्रवेश करने के बाद तो समय ही बहुत कम रहता है। इस कारण आज तक भी मेरा पुस्तक-ज्ञान बहुत थोड़ा है। मैं मानता हूँ कि इस अनायास