मुझे किसी के प्रति भी तिरस्कार का भाव नहीं उत्पन्न होता: महात्मा गाँधी

मैंने अनेक बार यह देखने की कोशिश की है कि मैं अपने शत्रु से घृणा कर सकता हूं या नहीं – यह देखने की नहीं कि प्रेम कर सकता हूं या नहीं, पर यह देखने की कि घृणा कर सकता हूं या

मैंने कॉंग्रेस इसलिए छोड़ी ताकि उसे और अधिक मदद कर सकूँ: महात्मा गाँधी

मैं काँग्रेस से जो हट गया हूँ उसके पीछे कुछ खास कारण हैं। यह मैंने इसलिए किया है कि काँग्रेस को मैं और भी अधिक मदद दे सकूँ। जब तक सत्य और अहिंसा पर आधार रखने वाले 1920 के कार्यक्रम की प्रतिज्ञा

गवर्नर को राज्य की पार्टीबाजी से अलग रहकर सार्वजनिक हित के लिए काम करना चाहिए: महात्मा गाँधी

मेरे ख़याल से तो प्रान्तों में अब गवर्नरों की ज़रूरत ही नहीं है। मुख्यमंत्री ही सब कामकाज चला सकता है। जनता का 5500 रु. मासिक गवर्नर के वेतन पर व्यर्थ ही क्‍यों खर्च किया जाये? फिर भी अगर प्रान्तों में गवर्नर रखने

जितने व्यक्ति हैं उतने धर्म हैं: महात्मा गाँधी

दुनिया के विभिन्‍न धर्म एक ही स्थान पर पहुँचने के अलग-अलग रास्ते हैं। जब तक हम एक ही उद्दिष्ट स्थान पर पहुँचते हैं, हमारे भिन्‍न-भिन्‍न मार्ग अपनाने में क्या हर्ज है? वास्तव में जितने व्यक्ति हैं उतने ही धर्म हैं।    

हमें अपने धर्म के दोषों के प्रति ज़ागरूक रहना चाहिए: महात्मा गाँधी

सभी धर्मों में सत्य का दर्शन होता है, परंतु सब अपूर्ण हैं और सब में भूलें हो सकती हैं। दूसरे धर्मों का आदर करने में उनके दोषों के प्रति आँखें मूँदने की ज़रुरत नहीं। हमें स्वयं अपने धर्म के दोषों के प्रति

मेरे राम, दशरथ के पुत्र और अयोध्या के राजा नहीं हैं: महात्मा गाँधी

मेरा राम अर्थात हमारी प्रार्थना के समय का राम ऐतिहासिक राम नहीं है, जो दशरथ के पुत्र और अयोध्या के राजा थे। वह तो सनातन, अजन्मा और अद्वितीय राम है। मैं उसी की पूजा करता हूं उसी की मदद चाहता हूं। आपको

धर्म अपना प्रचार खुद कर लेता है: महात्मा गाँधी

मैं यह नहीं मानता कि एक धर्म के लोगों को दूसरे धर्म के लोगों से, धर्मपरिवर्तन की दृष्टि से, कोई आग्रह करना चाहिए। धर्म में कहने की गुंजाइश नहीं होती। उसे जीवन में उतारना होता है। तब वह अपना प्रचार स्वयं कर

अस्पृश्यता के खिलाफ युद्ध करना प्रत्येक हिन्दू का पवित्र कर्त्तव्य है: महात्मा गाँधी

अस्पृश्यता हिंदू धर्म का अविभाज्य अंग नहीं है, बल्कि एक ऐसा अभिशाप है जिसके साथ युद्ध करना प्रत्येक हिंदू का पवित्र कर्त्तव्य है। इसलिए ऐसे सब हिंदूओं को, जो इसे पाप समझते हैं, इसके लिए प्रायश्चित करना चाहिए। इसके लिए उन्हें अछूतों

अनियंत्रित व्यक्तिवाद जंगली जानवरों का कानून है: महात्मा गाँधी

मैं व्यक्तिगत स्वतंत्रता की कीमत करता हूँ, परंतु आप को यह नहीं भूलना चाहिए कि मनुष्य मुख्यतः एक सामाजिक प्राणी है। अपने व्यक्तिवाद को सामाजिक प्रगति की आवश्यकताओं के अनुकूल बनाना सीखकर वह अपने मौजूदा ऊँचे दर्जे पर पहुँचा है। अनियंत्रित व्यक्तिवाद

अधिक धन चाहने का वास्तविक अर्थ है ‘मनुष्यों पर सत्ता’: महात्मा गाँधी

असल में धन के नाम से जो चीज़ चाही जाती है वह है मनुष्यों पर सत्ता। सीधे-सादे शब्दों में उसका अर्थ है, वह सत्ता जिससे हमें अपने लाभ के लिए नौकर, व्यापारी और कलाकार का श्रम मिल जाए। इसलिए साधारण अर्थ में