…इस तरह तो मुझे फांसी से भी बचाया जाना पसंद नहीं: महात्मा गाँधी

मैंने असंख्य बार कहा है कि सत्याग्रह में हिंसा, लूटमार, आगजनी आदि के लिए कोई स्थान नहीं है; लेकिन इसके बावजूद हमने मकान जलाये हैं, बलपूर्वक हथियार छीने हैं, लोगों को डरा-धमकाकर उन से पैसा लिया है, रेलगाड़ियाँ रोकी हैं, तार काटे

‘अभय’ के लिए हरिश्चंद्र की तरह बर्बाद होने की तैयारी होनी चाहिए: महात्मा गाँधी

अभय का मतलब है तमाम बाहरी भयों से मुक्ति। मौत का डर, धन-दौलत लुट जाने का डर, कुटुम्ब-कबीले के बारे में डर, रोग का डर, हथियार चलने का डर, आबरू का डर, किसी को बुरा लगने का – चोट पहुँचाने का डर,

कॉंग्रेसजनों को प्रत्येक हिन्दू और अहिन्दू का प्रतिनिधि बन जाना चाहिये: महात्मा गाँधी

साम्प्रदायिक एकता की आवश्यकता के बारे में सब सहमत हैं। परन्तु सबको यह मालूम नहीं है कि, एकता का अर्थ राजनीतिक एकता नहीं है, जो ऊपर से थोपी जा सकती है। उसका अर्थ है न टूटने वाली हार्दिक एकता। ऐसी एकता पैदा

सांप्रदायिक हत्याओं के खिलाफ बदले की भावना से समाज में शांति संभव नहीं है : महात्मा गाँधी

खून का बदला खून से या मुआवजे से कभी नहीं लिया जा सकता। खून का बदला लेने का एकमात्र उपाय यह है कि बदला लेने की कोई इच्छा न रखकर हम खुशी से अपने को बलिदान कर दें। बदले या मुआवजे से

ब्राह्मण और भंगी, सबमें भगवान विद्यमान है : गाँधी

  यदि विश्व में जो कुछ है वह सब ईश्वर से व्याप्त है, अर्थात,  ब्राह्मण और भंगी, पंडित और मेहतर, सबमें भगवान विद्यमान है, तो न कोई ऊंचा है और न कोई नीचा, सभी सर्वथा समान है; समान इसलिए क्योंकि सभी उसी

“अगर हिंदुस्तान का नसीब खराब है तो ईश्वर मुझे उठा ले!”

“लियाकत अली साहब और हमारे प्रधानमंत्री में भी यही समझौता हुआ है न, कि जो पाकिस्तान जाना चाहें वे पाकिस्तान चले जाएँ; लेकिन लियाकत अली साहब, सरदार और जवाहरलाल भी किसी को मजबूर नहीं कर सकते। कोई कानून नहीं है। इसीलिए जो

मुझे समझायें मैं कैसे हिन्दू धर्म को नुकसान पहुँचा रहा हूँ ?

“सभ्यता का नियम तो यह है कि जिन लोगों को कुरान शरीफ की आयत पर आपत्ति है वे अपना विरोध प्रकट करके चले जाएं और बाद में मुझको समझायें कि मैं इससे किस प्रकार हिन्दू धर्म को नुकसान पहुँचाता हूँ।  मैं समझदार

‘मैं खुद.. उद्योगों के केन्द्रीकरण के विरुद्ध हूँ’

हेलो! मैं गांधी    “मैं खुद तो बड़ी बड़ी कंपनियों और लंबी-चौड़ी मशीनरी के जरिए उद्योगों के केन्द्रीकरण के विरुद्ध हूँ। यदि बाहर खद्दर और उसके सारे अर्थों को अपना ले, तो मैं यह आशा नहीं छोड़ूँगा कि भारत केवल उतने ही

“इससे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता कि वेदों में तथाकथित रूप से जानवरों की बलि को स्थान प्राप्त है”: महात्मा गाँधी

“यज्ञ का अर्थ ऐसे कार्य से है जिसका उद्देश्य दूसरों का कल्याण है। ऐसे कार्य के बदले किसी लाभ की इच्छा भी नहीं होनी चाहिए, चाहे वो इच्छा लौकिक हो या आध्यात्मिक। ‘कार्य’ के अर्थ को वृहद् परिप्रेक्ष्य में लेने की आवश्यकता

“धन की गति में भी परिवर्तन हो सकता है”

  “धन नदी के समान हैं। नदी सदा समुद्र की ओर अर्थात नीचे की ओर बहती है इसी तरह धन को भी जहां आवश्यकता हो वही जाना चाहिए परंतु जैसे नदी की गति बदल सकती है।  धन की गति में भी परिवर्तन

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