ब्राह्मण और भंगी, सबमें भगवान विद्यमान है : गाँधी

  यदि विश्व में जो कुछ है वह सब ईश्वर से व्याप्त है, अर्थात,  ब्राह्मण और भंगी, पंडित और मेहतर, सबमें भगवान विद्यमान है, तो न कोई ऊंचा है और न कोई नीचा, सभी सर्वथा समान है; समान इसलिए क्योंकि सभी उसी

“अगर हिंदुस्तान का नसीब खराब है तो ईश्वर मुझे उठा ले!”

“लियाकत अली साहब और हमारे प्रधानमंत्री में भी यही समझौता हुआ है न, कि जो पाकिस्तान जाना चाहें वे पाकिस्तान चले जाएँ; लेकिन लियाकत अली साहब, सरदार और जवाहरलाल भी किसी को मजबूर नहीं कर सकते। कोई कानून नहीं है। इसीलिए जो

मुझे समझायें मैं कैसे हिन्दू धर्म को नुकसान पहुँचा रहा हूँ ?

“सभ्यता का नियम तो यह है कि जिन लोगों को कुरान शरीफ की आयत पर आपत्ति है वे अपना विरोध प्रकट करके चले जाएं और बाद में मुझको समझायें कि मैं इससे किस प्रकार हिन्दू धर्म को नुकसान पहुँचाता हूँ।  मैं समझदार

‘मैं खुद.. उद्योगों के केन्द्रीकरण के विरुद्ध हूँ’

हेलो! मैं गांधी    “मैं खुद तो बड़ी बड़ी कंपनियों और लंबी-चौड़ी मशीनरी के जरिए उद्योगों के केन्द्रीकरण के विरुद्ध हूँ। यदि बाहर खद्दर और उसके सारे अर्थों को अपना ले, तो मैं यह आशा नहीं छोड़ूँगा कि भारत केवल उतने ही

“इससे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता कि वेदों में तथाकथित रूप से जानवरों की बलि को स्थान प्राप्त है”: महात्मा गाँधी

“यज्ञ का अर्थ ऐसे कार्य से है जिसका उद्देश्य दूसरों का कल्याण है। ऐसे कार्य के बदले किसी लाभ की इच्छा भी नहीं होनी चाहिए, चाहे वो इच्छा लौकिक हो या आध्यात्मिक। ‘कार्य’ के अर्थ को वृहद् परिप्रेक्ष्य में लेने की आवश्यकता

“धन की गति में भी परिवर्तन हो सकता है”

  “धन नदी के समान हैं। नदी सदा समुद्र की ओर अर्थात नीचे की ओर बहती है इसी तरह धन को भी जहां आवश्यकता हो वही जाना चाहिए परंतु जैसे नदी की गति बदल सकती है।  धन की गति में भी परिवर्तन

“धन का संचित हो जाना भी राष्ट्र की हानि का कारण हो जाता है”

“शरीर पर एक प्रकार की लाली स्वास्थ्य सूचित करती है।दूसरे प्रकार की रक्त-पित्त रोग का चिन्ह है। फिर एक स्थान में खून का जमा हो जाना जिस तरह शरीर को हानि पहुँचाता है उसी तरह एक स्थान में धन का संचित हो

‘अहिंसा एक सामाजिक सद्गुण है’

“मेरी राय में अहिंसा केवल व्यक्तिगत सद्गुण नहीं है। वह एक सामाजिक सद्गुण भी है,जिसका विकास अन्य सद्गुणों की भांति किया जाना चाहिए। अवश्य ही समाज का नियमन ज्यादातर आपस के व्यवहार में अहिंसा के प्रगट होने से होता है। मेरा अनुरोध

‘पत्नी पति की दासी नहीं है, बल्कि उसकी जीवन संगिनी और सहायक है’

“पत्नी पति की दासी नहीं है, बल्कि उसकी जीवन संगिनी और सहायक है और उसके तमाम सुख-दुख में बराबर का हिस्सा बँटाने वाली है। वह स्वयं अपना मार्ग चुनने को उतनी ही स्वतंत्र है जितना उसका पति।  मैं बाल विवाह से घृणा

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