लोग बदलाव लाने की कोशिश कर रहे हैं। यह वो लोग हैं जिनका मानना है कि नफरत की आँधी इस देश के संस्थापक मूल्यों में से नहीं है।आवश्यकता है अपने विवेक, तर्कशीलता और अहिंसा का प्रयोग करते हुए संगठित रहने की।
फ़िल्म की आड़ में जिस तरह सिनेमाघरों में उन्मादी भाषण दिए जा रहे हैं, साधारण कार्यकर्ता से लेकर प्रधानमंत्री तक, सोशल मीडिया से लेकर मुख्यधारा की मीडिया तक फ़िल्म को जिस परिप्रेक्ष्य में रख रहे हैं उससे फ़िल्म का मकसद क्या है
आखिर वो “हम भारत के लोग” ही तो हैं जिनसे संविधान अपनी प्रस्तावना में सर्वाधिक आशा करता है न की पार्टी, राजनेताओं और मंत्रियों से.नागरिक दायित्व कहते हैं कि राजनीति के अपराधीकरण के दौर के बाद अब इस संवेदनशील दौर में, फेसबुकीकरण
फ्रेंच क्रांति के दौरान एक बड़ा सवाल उठा कि क्या राजा को पूर्ण वीटो का अधिकार होना चाहिए या नहीं। जो पूर्ण वीटो के पक्ष में थे वो उस बैठक में सभापति के राइट में बैठे थे और जो सदियों की इस
तमाम तरह की कमियों के बावजूद जिस तरह से दिल्ली की एक अदनी सी कही जाने वाली पार्टी ने पंजाब में जीत का परचम फहराया है वो मेरे लिए भारतीय राजनीति का एक टर्निंग प्वाइंट है।….जनता विकल्प ढूंढ लेती है। आप ज्यादे
अगर एक तर्कसंगत रवैया समाज में फैले अंधविश्वास, भावुकता और तर्कहीनता को किसी भी तरह से कम करता है तो इस बात पर मेरा गहरा विश्वास है कि वह समाज निश्चित तौर पर रचनात्मकता और प्रगति की ओर अग्रसर है। एक
आज़ादी के 70 सालों के बाद भी यहाँ रोजगार के नाम पर खेती के अलावा कुछ खास नहीं है। पक्ष और पार्टी से परे बेरोजगारी हर राज्य की समस्या है। एक भी भर्ती या बहाली ऐसी नहीं जो संदेह या कोर्ट के
बेरोजगारी का दर्द उस पिता से पूछा जाना चाहिए जो हाथ में डिग्री लिए अपने बेटे से अपने बुढ़ापे का सहारा बनने की आस लगाए बैठा है। इस दर्द को वो माँ बयाँ करेगी जिसने अपने बेटे को सफल होते देखने के
“देअर आर मैनी कॉज़ेज़ आई वुड डाई फॉर। देअर इज़ नॉट अ सिंगल कॉज़ आई वुड किल फॉर।” – महात्मा गांधी गांधी अहिंसा का वो प्रतीक हैं जिस ने मार्टिन लूथर किंग, दलाई लामा, नेल्सन मंडेला सरीखी शख्सियतों को अहिंसा की
महाभारत का युद्ध चल रहा था। कर्ण और अर्जुन की पुरानी प्रतिद्वंदिता थी। कर्ण किसी भी तरह अर्जुन को परास्त करना चाहता था। कहते हैं एक ऐसा मौका आया था जब कर्ण अर्जुन को परास्त कर सकता था। एक कथा है कि